नई दिल्ली। दुनिया भर में स्वास्थ सेवा और महामारी जैसी बीमारियों के काम करने वाली सबसे बड़ी संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि वर्ल्ड़ हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन पर बड़ा आर्थिक संकट मंडरा रहा है क्योंकि अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ से सारे संबंधों को तोड़ने ऐलान करते हुए इस इस संस्था को अमेरिका से मिलने वाले सारे फंडिंग पर रोक लगा दी है। जिसकी घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मीडिया से बातचीत के दौरान की।
डोनल्ड ट्रंप ने कहा कि WHO को सबसे ज्यादा पैसा अमेरिका से मिलता है, लेकिन इस संस्था ने हमेशा से हमारी आलोचना की है और हमारी बात नहीं मानी। उन्होंने बहुत कुछ गलत किया है उनके पास शुरुआत से ही ढ़ेर सारी जानकारियां थी पर उन्होने सच को छिपाया और चीन का साथ दिया, वो सारी बातें जानते थे या नहीं जानते थे, हमें नहीं पता लेकिन अब हम इसे गंभीरता से ले रहे हैं और अब हम WHO को मिलने वाली सारी राशियों पर रोक लगा रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका के अलग होने के ऐलान के बाद से ही संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था के कंगाल होने की कयासबाजियां शुरू हो गई हैं। बता दें कि इस संस्था को सालाना 4 करोड़ डॉलर का सबसे ज्यादा फंड अमेरिका से ही मिलता था, लेकिन फिर भी वो चीन के नियंत्रण में है इसलिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार डब्लूएचओ सार्वजनिक तौर पर खरी-खरी सुना चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टैड्रोस ऐडरेनॉम गैबरेयेसस ने 2017 में डब्लूएचओ की कमान संभाली थी। कहा जाता है कि उन्हें यह पद चीन के पैरवी करने के कारण मिला था। इसलिए वह चीन के हक में फैसले ले रहे हैं।
ऐसे में अब सवाल उठ रहे हैं कि अमेरिका की ओर से हाथ खींचने के बाद क्या वाकई में कंगाल हो जाएगा WHO? दरअसल WHO को दो तरीकों से फंड मिलता है। पहला- असेस्ड कंट्रीब्यूशन। इस फंड को WHO के सदस्य देश देते हैं। कौन सा देश कितना फंड देगा ये पहले से निश्चित होता है। फंड का निर्धारण उस देश की अर्थव्यवस्था और जनसंख्या के आंकड़ों के जरिए किया जाता है। असेस्ड कंट्रीब्यूशन के जरिए ही विश्व स्वास्थ्य संगठन को सबसे ज्यादा फंडिंग मिलती है। इससे WHO अपने खर्च और प्रोग्राम की फंडिंग करता है। और दूसरा- वॉलेंटरी कंट्रीब्यूशन। इन दोनों तरीकों से मिले फंड से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन का खर्च चलता है।