नई दिल्ली। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों के सोमवार के भारत बंद को दिए गए समर्थन से किसान नेता राकेश टिकैत उत्साहित हैं। उन्होंने भारत बंद जैसे विरोध प्रदर्शन के तरीके को सरकार से ही सीखने की बात कह कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर के कृषि कानूनों पर बातचीत के विकल्प को ठुकरा दिया। राकेश टिकैत का साफ कहना है कि कृषि मंत्री रट्टू हैं। उन्हें जो सिखाया गया है वही बोल रहे। हालांकि उन्होंने यह भी साफ किया कि भारत बंद के जरिए वह सरकार को एक संदेश देना चाहते हैं। साथ ही चेतावनी भी दी कि यदि सरकार चाहेगी तो किसान अगले 10 साल तक आंदोलन करने के लिए भी तैयार हैं।
दस घंटे के भारत बंद के बीच राष्ट्रीय किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने दो टूक कहा है कि आंदोलनरत किसानों ने इमरजेंसी सेवाएं बाधित नहीं की हैं। 'डॉक्टर, एंबुलेंस और अन्य आपातकालीन सेवाओं से जुड़े लोगों की आवाजाही पर कोई रोक नहीं है। हम दुकानदारों से अपील करते हैं कि वह शाम 4 बजे तक अपनी-अपनी दुकानें बंद रखें। इस भारत बंद के जरिये हम सरकार को एक संदेश देना चाहते हैं। सरकार कृषि कानूनों में संशोधन की बात करती है, वापसी की नहीं। जब तक कानून वापस नहीं होंगे आंदोलन खत्म नहीं होगा। हम अगले दस सालों तक आंदोलन करते रहेंगे।'
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर की बातचीत के विकल्प पर राकेश टिकैत ने कहा कि वे रट्टू हैं। बचपन में जो जितना पढ़ाया गया, वही जानते हैं। संशोधन की बात कर रहे, लेकिन कानून वापसी की बात नहीं कर रहे। किसी के विचार को आप विचार से ही बदल सकते हैं, बंदूक के जोर पर विचार नहीं बदले जा सकते। भारत बंद से क्या हासिल होगा के सवाल पर उन्होंने कहा कि क्या देश में पहली बार बंद हो रहा है? आज जो सरकार में हैं जब वे लोग बंद करते थे तो उन्हें क्या हासिल होता था? हमने तो उनसे ही सीखा है। टिकैत ने कहा कि हो सकता है कि भारत बंद से ही कुछ रास्ता निकल जाए। उन्होंने कहा कि यह भी आंदोलन का एक हिस्सा है। उन्होंने कहा कि सरकार बेइमान है, धोखेबाज है। हालांकि उन्होंने साफ करने की कोशिश की भारत बंद का राजनीति से कतई कोई लेना-देना नहीं है।
गौरतलब है कि देश के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान पिछले साल नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। आंदोलनरत किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर ही अड़े हैं, जबकि सरकार बातचीत के जरिये समाधान निकालने की बात कर रही है। किसानों की मुख्य मांग यही है कि इन कृषि कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली खत्म कर दी जाएगी और किसान बड़े कार्पोरेट घरानों के रहम-ओ-करम पर आ जाएंगे। जानकारी के मुताबिक किसानों का आंदोलन खत्म कराने के लिए सरकार और किसान यूनियन के बीच अब तक 11 दौर की बातचीत हुई है। इस कड़ी में आखिरी बातचीत 22 जनवरी को हुई थी, जिसमें भी कोई हल नहीं निकल सका था।