नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी कानून यानी आईटी एक्ट की धारा 66A को गैर-संवैधानिक घोषित किए जाने के बावजूद इसके तहत मुकदमे दर्ज किए जाने पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और सभी उच्च न्यायालयों को नोटिस जारी किया है। नोटिस में सुप्रीम कोर्ट ने साफ ताैर पर कहा है कि वह कंप्रीहेंसिव ऑर्डर पास करेगा ताकि आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत मुकदमे दर्ज करने का चलन हमेशा के लिए खत्म हो जाए।
न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और बीआर गवई ने निर्देश दिया कि सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस दिया जाए और मामले को 4 सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए। केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा है कि यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का प्राथमिक कर्तव्य है कि वे आईटी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत मामले दर्ज करना बंद कर दें क्योंकि इसे रद किया जा चुका है।
इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा-66 ए प्रावधान को रद्द करने के बाद इसके तहत मामले दर्ज को बंद करना राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की जिम्मेदारी है।
हलफनामे में यह भी कहा गया है कि पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था भारत के संविधान के अनुसार राज्य के विषय हैं और अपराधों का पता लगाकर इसकी रोकथाम, जांच व अभियोजन और पुलिस कर्मियों की क्षमता निर्माण मुख्य रूप से राज्यों की जिम्मेदारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'ऐसे नहीं चल सकता। हम कोर्ट और पुलिस के लिए समग्र आदेश (Comprehensive Order) पारित करेंगे।' इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने इस मामले में दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान देशभर के हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार को भी नोटिस जारी किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के नोटिस पर केंद्र सरकार ने जवाब दिया था कि कानून-व्यवस्था का मामला राज्य का विषय है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश से जवाब दाखिल करने को कहा है। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई को सुनवाई में यह जानकर हैरानी जताई थी कि छह साल पहले निरस्त किए गए कानूनी प्रावधान के तहत मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। यह धारा ऑनलाइन टिप्पणी करने से जुड़ी है। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन ‘अपमानजनक’ टिप्पणी करने को अपराध की श्रेणी में डालने वाली विवादित धारा 66ए को खत्म कर दिया था।