नई दिल्ली। भारत में खराब शिक्षा व्यवस्था और नौकरियों के कम मौकों के चलते बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है। इसमें भी पढ़े-लिखे लोगों को सबसे ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। एक हालिया सर्वे में सामने आया है कि भारत में बेरोजगारी में ग्रेजुएट लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। चौंकाने वाली बात यह है कि रोजगार देने के हजारों दावों के बावजूद जिन राज्यों में बेरोजगारी सबसे ज्यादा है, उनमें एनडीए शासित राज्य काफी ऊपर हैं।
आंकड़ों की बात करें तो सभी राज्यों की औसत बेरोजगारी दर 4.8 फीसदी रही है। इसमें भी स्नातकों का बेरोजगारी दर 17.2 प्रतिशत पर है। इसके बाद डिप्लोमाधारियों और सर्टिफिकेट कोर्स करने वालों का बेरोजगारी दर 14.2 फीसदी है। इसके अलावा पोस्ट ग्रेजुएट और और उससे ज्यादा पढ़ाई करने वालों की स्थिति भी कुछ खास ठीक नहीं है और ऐसे लोगों की बेरोजगारी दर 12.9% है।
जिन छह राज्यों में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है, उनमें बिहार का नाम काफी ऊपर है। नीतीश सरकार के राज में राज्य में ग्रेजुएट की बेरोजगारी दर 19.9 फीसदी है। वहीं, पोस्ट ग्रेजुएट की बेरोजगारी दर 12.3 प्रतिशत है। हालांकि, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स वालों की बेरोजगारी 84.9 फीसदी है। इसके अलावा दिल्ली का नाम है, जहां ग्रेजुएट 13.5 फीसदी, पोस्ट ग्रेजुएट 16.1 फीसदी और डिप्लोमा-सर्टिफिकेट धारक 14.6 प्रतिशत बेरोजगार हैं।
बेरोजगारी दर में हरियाणा, झारखंड, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड भी शामिल हैं। यहां झारखंड को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में भाजपा की ही सरकार है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों के भरपूर रोजगार देने के दावों के बावजूद एनएसओ की तस्वीर अलग ही कहानी कहती है।
इससे पहले इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2021में दावा किया गया था कि 50 फीसदी भारतीय ग्रेजुएट्स नौकरी के लायक ही नहीं हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि सिर्फ 45.9 फीसदी ग्रेजुएट ही काम पाने के लायक हैं। यह आंकड़ा तीन साल में सबसे निचले स्तर पर था। हालांकि, इस लिस्ट में भी जिन राज्यों में ग्रेजुएट नौकरी पाने के लिए सबसे योग्य पाए गए थे, उनमें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के स्नातक शामिल थे।