नई दिल्ली। हीमोफिलिया फेडरेशन इंडिया (एच एफ आई) के अध्यक्ष मुकेश गरोडिया के कहा है कि हीमोफिलिया को आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 में विकलांगता के तौर पर इंगित किया गया है लेकिन इसे एक मानक विकलांगता की श्रेणी में नहीं रखे जाने की वजह से कई समस्याएं पैदा हो गई हैं। विश्व हीमोफिलिया दिवस के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि इसके कारण रोजगार में आरक्षण प्राप्त करने में असमर्थता हो रही है। इसकी वजह से इससे जूझ रहे मरीजों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक अन्य मोर्चे पर हीमोफिलिया के खिलाफ लड़ाई में हीमोफिलिया को डायग्नोस करना बेहद मुश्किल है और 80 प्रतिशत से अधिक आबादी बिना डायग्नोस के ही रह जाती है।
उन्होंने कहा कि भारत में संभावित 1.3 लाख हीमोफिलिया मरीजों में से केवल 25 हजार ही हीमोफीलिएक्स के तौर पर प्रमाणित है। इन दो महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने के लिए एचएफआई समय-समय पर विभिन्न प्लेटफार्मों पर इस आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित करती है। गरोडिया ने कहा कि वर्तमान में, प्रभावी और उच्च गुणवत्ता वाली एएचएफ को विदेशी दवा कंपनियों से महंगी लागत और मुश्किल प्रक्रिया से गुजरकर खरीदना पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों में एएचएफ की उपलब्धता सीमित है, कई संस्थानों में तो एएचएफ की एक साल की आपूर्ति का इस्तेमाल एक महीने में ही हो जाता है।
एचएफआई, वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफिलिया से डोनेशन के जरिए कुछ हद तक कमी को पूरा कर रही है और देशभर के सरकारी अस्पतालों में स्थापित 78 हीमोफिलिया उपचार केंद्रों में स्वतंत्र रूप से वितरित करती है। हालांकि, एचएफआई-डब्ल्यूएफएच एसोसिएशन की यह सहायता पूरी तरह से समस्या का समाधान नहीं करती, जिससे एचएफआई के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह उपचार सुविधाओं में सुधार के लिए रोगी समुदाय के साथ खड़ा रहे और देश में स्थानीय स्तर पर इन दवाओं के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहें। पूरी दुनिया में 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस के रूप में मनाया जाता है और भारत में हीमोफिलिया को लेकर जागरुकता बढ़ाने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था।