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युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने का संदेश देते है संत रविदास : नरेंद्र मोदी

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Feb 28 2021 3:44PM | Updated Date: Feb 28 2021 3:44PM
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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि संत रविदास ने अपने संदेशों में युवाओं को निरंतर काम करने तथा अपने पांव पर खड़े होने की जो प्रेरणा दी है, उसने युवाओं में नया करने की इच्छाशक्ति पैदा की है और उसी का परिणाम है कि हमारे युवा आज आत्मनिर्भरता की राह पर हैं। मोदी ने रविवार को आकाशवाणी से प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम 'मन की बात' में संत रविदास को नमन करते हुए कहा, "माघ पूर्णिमा के दिन ही संत रविदास जी की जयंती होती है। उनके शब्द, उनका ज्ञान आज भी हमारा पथ प्रदर्शन करते है। उन्होंने कहा था- "एकै माती के सभ भांडे, सभ का एकौ सिरजनहार।
 
रविदास व्यापै एकै घट भीतर, सभ कौ एकै घड़ै कुम्हार। मतलब हम सभी एक ही मिट्टी के बर्तन हैं, हम सभी को एक ने ही गढ़ा है। उन्होंने समाज में व्याप्त विकृतियों को सामने रखा और उन्हें सुधारने की राह दिखाई।" प्रधानमंत्री ने कहा, "यह मेरा सौभाग्य है कि मैं संत रविदास जी की जन्मस्थली वाराणसी से जुड़ा हुआ हूँ। उनके जीवन की आध्यात्मिक ऊंचाई को और उनकी ऊर्जा को मैंने उस तीर्थ स्थल में अनुभव किया है। वह कहते थे-'करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस.कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।' मतलब हमें निरंतर अपना कर्म करते रहना चाहिए, फिर फल तो मिलेगा ही मिलेगा, यानी, कर्म से सिद्धि तो होती ही होती है।
 
हमारे युवाओं को एक और बात संत रविदास जी से जरुर सीखनी चाहिए। युवाओं को कोई भी काम करने के लिये, खुद को, पुराने तौर तरीकों में बांधना नहीं चाहिए। आप, अपने जीवन को खुद ही तय करिए। अपने तौर तरीके भी खुद बनाइए और अपने लक्ष्य भी खुद ही तय करिए। अगर आपका विवेक, आपका आत्मविश्वास मजबूत है तो आपको दुनिया में किसी भी चीज से डरने की जरूरत नहीं है।" उन्होंने कहा कि कई बार युवा एक चली आ रही सोच के दबाव में वह काम नहीं कर पाते जो वाकई उन्हें पसंद होता है। उनका कहना था कि युवाओं को कभी भी नया सोचने या नया करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
 
उन्होंने कहा, "इसी तरह, संत रविदास जी ने अपने पैरों पर खड़ा होने का एक और महत्वपूर्ण सन्देश दिया है। हम अपने सपनों के लिये किसी दूसरे पर निर्भर रहें, ये बिलकुल ठीक नहीं है। जो जैसा है वो वैसा चलता रहे, रविदास जी कभी भी इसके पक्ष में नहीं थे और आज हम देखते है कि देश का युवा भी इस सोच के पक्ष में बिलकुल नहीं है। आज जब मैं देश के युवाओं में नया करने की क्षमता देखता हूँ तो मुझे लगता है कि हमारे युवाओं पर संत रविदास जी को जरुर गर्व होता।" 
 
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