कोविड महामारी के संदर्भ में यह वैज्ञानिक तथ्य है कि कोरोना वायरस जब तक गले की कोशा में प्रविष्ट नहीं होता है, बाहर की लाइनिंग में ही उलझा रहता है। मगर जैसे ही इसका स्पाइक कोशा की अर्धपारगम्य झिल्ली को तोड़ने की कोशिश करता है, इसकी वृद्धि दर एकाएक कई गुना बढ़ने लगती है। यहां इससे फर्क नहीं पड़ता कि केवल एक वायरस प्रविष्ट हो रहा है या फिर एक सौ। इस प्रकार स्पाइक ही वह स्थान है, जहां कृत्रिम रूप से छेड़छाड़ की गई है। यह इसी का प्रभाव है कि कील द्वारा कोशा की बाहरी झिल्ली को तोड़ते ही उसके फॉर्म में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है।
यही कारण है कि इस नवीन वायरस के करीब 4,300 प्रारूपों की चर्चा इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पुणे ने की है। फरवरी तक चीन के वुहान प्रांत में यह केवल एक ही प्रारूप में था, जबकि इसके भारत में ही अब तक कई प्रारूप सामने आ चुके हैं। भारत में तेलंगाना, राजस्थान, दिल्ली और गुजरात में ही यह अलग अलग प्रारूपों में पाया गया है। तारीख दर तारीख और माह दर माह इसके जीन में भी परिवर्तन देखा गया है।
कोरोना से संक्रमित किसी व्यक्ति में यह वायरस शुरुआती चार या पांच दिन तक गले की लाइनिंग में उलझा रहकर गले की कोशाओं में प्रविष्ट होकर आगे बढ़ने की कोशिश करता है। इसीलिए पहले चार या पांच दिनों में गर्म भाप लेकर या हर 20 मिनट में गरम पानी पीते रहने की सलाह भी दी जाती है, क्योंकि यही वह स्थान है जहां अगर वायरस गले की कोशाओं में प्रविष्ट न हो पाए, तो वह सीधे अमाशय में पहुंचता है, जहां अम्ल इसे निष्क्रिय करने में सक्षम है। कई बार यह गले की कोशा में प्रविष्ट होकर संक्रमण के गंभीर दौर में आदमी को परेशान करने में सफल हो जाता है। इसका कारण इसमें कृत्रिम रूप से छेड़छाड़ कर किए गए उत्परिवर्तन हैं।
हर्ड इम्युनिटी : भारतीय की रग में इम्युनिटी यानी प्रतिरक्षात्मकता का पहला क्षण तब आता है, जब पैदा होते ही मां उसे अपना पहला दूध पिलाती है। फिर सरकार दशकों से बीसीजी और पोलियो वैक्सीन बच्चों को देने के लिए प्रेरित करती रही है। ये दोनों वैक्सीन जिन बच्चों को लगी है या पी रखी है, उन्हें अतिरिक्त प्रतिरक्षा के लिए घबराना नहीं चाहिए। साथ ही मलेरिया के इलाज के लिए दशकों से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन नामक दवा नागरिकों को देने की सरकार ने व्यवस्था कराई है। यही दवा आज कोरोना के इलाज में उपयोगी साबित हो रही है। मगर इसे केवल विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह से कई अन्य दवाओं के साथ मिला कर दिया जाता है। ये सभी मिलकर भारतीयों में हर्ड इम्युनिटी बना रहे हैं। यह सुविधा विदेशियों के लिए उपलब्ध नहीं है, क्योंकि कई यूरोपीय देशों में तो मलेरिया होता ही नहीं, तो उन नागरिकों को यह प्रतिरक्षी दवाएं दी ही नहीं जाती हैं, लेकिन भारतीय परिस्थितियों के लिए कहा गया कि जून के आखिर तक बीस लाख भारतवासियों की मृत्यु हो जाएगी, तब जाकर हर्ड इम्युनिटी विकसित होने की संभावना है। इसका कोई तथ्यपूर्ण वैज्ञानिक आधार नहीं है।
अब तो एसिम्प्टोमेटिक मरीज को लंबे समय तक अस्पतालों में न रख कर, आइसोलेशन में निरीक्षण में रखा जा रहा है। ऐसे व्यक्ति भी धीरे-धीरे ठीक होकर सामूहिक प्रतिरक्षात्मकता में योगदान देते हैं। ज्यादातर भारतीयों में प्रतिरक्षात्मकता पहले से ही मौजूद है। जहां तक इसके वैक्सीन के विकास की बात है तो ब्रिटेन के वैक्सीन बनाने के प्रयास को एक झटका पहले ही लग चुका है। ब्रिटेन ने वैक्सीन बनाने के लिए चीन से कोडॉन आयात किया था। आज पूरा विश्व चीन की ओर से आशंकित है।
जाहिर है ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिक भी इन तथ्यों से भलीभांति अवगत थे। इस विषय में भारत बहुत बेहतर स्थिति में है, क्योंकि यहां विभिन्न संस्थान वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया से जुड़े हैं, लेकिन सफल वैक्सीन निर्माण से पहले भारत में जड़ पकड़ती हर्ड इम्युनिटी इसका कार्यकारी विकल्प दे देगी और भारत विश्व में इस ओर अग्रणी भूमिका निभाएगा, क्योंकि एक तो भारत ने स्वयं द्वारा विश्लेषित वायरस सीक्वेंस पर कार्य शुरू कर दिया है और दूसरा वैज्ञानिकों ने बीसीजी वैक्सीन को आधार मानकर वैक्सीन विकास का कार्य आरंभ किया है। भारत में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन और अजिथ्रोमाइसिन का मिश्रित उपयोग रिकवरी दर में वृद्धि करने में सहायक साबित हुआ है जिससे भारत में कोरोना से बचाव में रिकवरी दर में निरंतर सुधार हो रहा है।
यदि किसी व्यक्ति में स्पष्ट लक्षण न दिखे, तब भी उसका इलाज संभव है। वायरस के शरीर में प्रविष्ट होने के चार-पांच दिनों तक गर्म पानी पीने से या थोड़े-थोड़े अंतराल पर गरम पानी की भाप लेने से वायरस को सांस नली की कोशा में प्रविष्ट होने से रोका जा सकता है। भारत में स्थिति नियंत्रण में रहने की उम्मीद है, क्योंकि वैज्ञानिकों ने अनेक शोधों के जरिये यह जाना-समझा है कि यहां के लोगों में सामूहिक प्रतिरक्षात्मकता इस कदर मजबूत है कि यदि लोग सरकार द्वारा कोविड महामारी से निपटने के संबंध में जारी किए गए तमाम दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करते रहे, तो निश्चित तौर पर इस महामारी को मिलकर हराया जा सकता है।