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कोरोनो के खिलाफ लड़ाई में गरीबों, वंचितों की उपेक्षा न हो: एमनेस्टी

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 29 2020 12:55AM | Updated Date: Mar 29 2020 12:55AM
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नई दिल्ली। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कोरोनो महामारी के डर से भारत में पलायन कर रहे लोगों के हालत पर गहरी  चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि इस महामारी से लड़ने के लिए भारत में 21 दिनों के लॉक डाउन ने लाखों प्रवासी मज़दूरों को और गहरे संकट में डाल दिया  है और उन्हें जिंदा रहने के लिए  ज़रूरी सेवाओं की खातिर  जूझना पड़ रहा है। भारत मे एमनेस्टी के  कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने शनिवार को एक बयान में कहा कि भारत सरकार की ओर से महामारी से लड़ने के लिए जो नीतियाँ और योजनाएँ अपनाई जा रही हैं, उनके ज़रिये गरीबों और हाशिए के समुदायों की कठिनाइयाँ बढ़ने की जगह कम होनी चाहिए।
 
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में कहा था,‘‘भारत एक महत्वपूर्ण चरण से गुज़र रहा है और बस एक गलत कदम की वजह से यह घातक वायरस जंगल की आग की तरह फैल सकता है और पूरे देश को खतरे में डाल सकता है। अगर हम लापरवाही करते रहे तो भारत को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। ’’  कुमार ने कहा,‘‘यह आवश्यक है कि भारत इस  महामारी से लड़ने के लिए सभी ज़रूरी कदम उठाए लेकिन, यह भी उतना ही ज़रूरी है कि सबसे कमजोर समुदायों के हितों को महामारी से लड़ने की हर नीति के केंद्र में रखा जाए। लॉकडाउन  का बुरा असर सबसे ज़्यादा प्रवासी और देहाड़ी वाले मज़दूरों और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों पर पड़ा है।
 
उन्होंने कहा कि इस महामारी से  निपटने के लिए कोई भी कार्रवाई तय करते वक्त, भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन समुदायों की जरूरतों और अनुभवों को नज़रअंदाज़ न किया जाए। ’’ उन्होंने कहा कि 2018-2019 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत के कार्यबल का 93 फीसदी हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जिन तक सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की पहुँच सीमित या अपर्याप्त है। जब भारत की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे बंद होने की कगार पर है, ऐसे में लाखों मज़दूरों की नौकरियाँ पहले ही जा चुकी हैं।
 
चूंकि लॉकडाउन  के दौरान बस और रेलवे सेवाओं को भी रद्द कर दिया गया है, इसलिए कई लोग अपने घरों तक चल कर जाने के लिए मजबूर हैं, कुछ लोगों के लिए इसका मतलब 1000 किमी से भी अधिक दूरी तय करना है। रेस्त्रां और होटल बंद होने के कारण, घर की ओर लंबा सफर तय करते समय उनके पास साफ पानी और खाने का भी कोई साधन नहीं है। और इन घावों पर नमक छिड़कने का काम राज्य पुलिस तंत्र द्वारा दमन के ज़रिये किया जा रहा है, जिसमें तालाबंदी के उल्लंघन के नाम पर इन मज़दूरों के साथ बदसलूकी, मनमानी गिरफ्तारी और गैर-जरूरी या अत्यधिक बल का इस्तेमाल शामिल है।
 
कुमार ने कहा,‘‘देशव्यापी तालाबंदी के चलते लाखों लोग पानी और खाने के लिए जूझने के लिए मजबूर हैं। दुर्भाग्य से इन लोगों के लिए सरकारी तंत्र,इस  महामारी से बड़ा खतरा बन गया है। यह बड़े दु:ख की बात है और भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि महामारी से निपटने के लिए असंवेदनशीलता और बल-प्रयोग के बजाय जनतपरस्त तरीकों का इस्तेमाल किया जाए। सभी परिस्थितियों में अत्याचार और अन्य बद्सलूकियों का इस्तेमाल वर्जित है, और इसे कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता, चाहे वह सार्वजनिक स्वस्थ्य से जुड़ी संकटकालीन परिस्थितियाँ ही क्यों न हों। ’’ 
 
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