नई दिल्ली। कोरोनो महामारी के डर से भारत में हजारों लोग पलायन कर रहे है महामारी से लड़ने के लिए भारत में 21 दिनों के लॉक डाउन ने लाखों प्रवासी मज़दूरों को और गहरे संकट में डाल दिया है और उन्हें जिंदा रहने के लिए ज़रूरी सेवाओं की खातिर जूझना पड़ रहा है। उत्तरप्रदेश की योगी सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार की अपील के बावजूद पलायन करने वाले मजदूरों की संख्या कम होने के बावजूद बढ़ती जा रही है।
हौसला यह है कि 1000 किलोमीटर घर दूर है फिर भी कदम नहीं थम रहे हैं। सड़कों पर इनका अलग-अलग झुंड देखने को मिला। पलायन करने वाले बसों को रोकने की कोशिश करते, लेकिन चालक बसें रोकते और अपनी मजबूरी बताकर बस ले जाते। कोई दूसरा साधन भी उपलब्ध न होने की वजह से वे पैदल ही अपने घरों की ओर चलते रहे। हाइवे पर जा रहे लोगों से बात की गई, तब जाकर उनकी मजबूर सामने आई। उनकी आपबीती भावुक करने वाली है।
दरअसल, लोगों को ऐसा लगता है कि लॉकडाउन आगे भी बढ़ सकता है। ऐसे में लोगों को चिंता सता रही है कि इस माह तो मकान मालिक भले ही किराया के लिए परेशान न करें, लेकिन अगले माह से ये किराया कैसे देंगे। काम बंद है, बिना काम के वे इतने दिन कैसे रहेंगे उनके पास खाने-पीने समेत अन्य जरूरी सामान का स्टॉक नहीं है। इतना भी राशन नहीं है कि आने वाला सप्ताह कट जाए। उनके पास जो भी राशन है, वह लेकर चल पड़े हैं। उन्हें उम्मीद कि रास्ते में कोई मदद मिली तो ठीक, और न भी मिली तो भी अपने घर तो पहुंच ही जाएंगे।
मूलरूप से लखनऊ के रहने वाले विनीत अपने कई दोस्तों के साथ साकेत इलाके में किराये पर रहते थे और यहीं पर मजदूरी करते थे। पत्नी व बच्चे लखनऊ में हैं। लॉकडाउन के कारण उनका रोजगार बंद हो गया है। ज्यादा राशन भी नहीं बचा है। विनीत ने बताया कि घर से भी बार-बार फोन आ रहे हैं। उन्हें हमारी फिक्र हो रही है। यूपी के गोरखपुर निवासी राहुल ने बताया कि पैदल जाने में भले ही पांच-छह दिन लग जाएंगे, लेकिन एक बार पहुंचने के बाद तो समस्या कम हो जाएंगी। वहीं, घर में पत्नी व बच्चों को भी हमारी चिंता नहीं होगी। अभी कोई भी सार्वजनिक परिवहन चल नहीं रहा है। ऐसे में पैदल जाना मजबूरी है।
बादली औद्योगिक क्षेत्र स्थित एक फैक्ट्री में काम करने वाले सुनील कुमार ने बताया कि अब बड़े शहरों में नही रहना गांव में अपनों की छांव में रह कर जिंदगी काट लेंगे। सुनील मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गोंडा जनपद के रहने वाले हैं। शुक्रवार तड़के वे पैदल दिल्ली से गोंडा जाने के लिए निकले हैं। उनके साथ परिवार के ही चार लोग और हैं, सभी यहां पर अपने परिवार को छोड़ कर रोजी-रोटी कमाने आए थे। उन्ही के साथ गांव जा रहे प्रमोद ने बताया कि इस कठिन परिस्थिति में उनके मां, बाप घर में अकेले हैं उनकी देखभाल के लिए कोई नहीं है।
फैक्ट्री मालिक ने थोड़े पैसे देकर कह दिया कि आप सब अपने गांव चले जाएं जब स्थिति ठीक होगी तब आना। वर्तमान स्थिति में न तो बसें चल रही है और न ही रेलगाडि़यां । हमारी तरफ किसी का भी ध्यान नही जा रहा है। अपनों की चिंता में बने पैदल मुसाफिर लोगों ने बताया कि इस मुश्किल घड़ी में गांव में रह रहे परिजनों की चिंता हमें पैदल चलने को मजबूर कर रही है। अधिकतर लोग अपने बुजुर्ग मां बाप को छोड़कर यहां आए हैं। ऐसे में इस समय उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है।
सरकार को हमें हमारे अपनों के पास भेजने का इंतजाम करना चाहिए। यहां गए लोग रामपुर, लखनऊ, सहारनपुर, कानपुर, गोरखपुर, बिजनौर,मुजफ्फरनगर, बदायूं, आजमगढ़, चांदपुर, मेरठ, बरेली, बुलंदशहर, इटावा, जौनपुर, अमरोहा, पीलीभीत, संभल आदि। अरुण कुमार मिश्रा (जिलाधिकारी उत्तरी पूर्वी जिला) के मुताबिक, मैं खुद शुक्रवार को दिल्ली-उप्र बॉर्डर पर गया था। जो लोग दिल्ली छोड़कर जा रहे थे उन्हें समझाया कि दिल्ली में उन्हें किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी। सभी के लिए खाने से लेकर स्वास्थ्य सुविधाओं व्यवस्था सरकार की ओर से की गई है। उनका कहना था कि वह अपने घर पर जाकर अपने परिवार के साथ रहना चाहते हैं, इसलिए जा रहे हैं। पुलिस को आदेश दिया गया है कि जो लोग जहां हैं उन्हें वहीं रहने दिया जाए, दिल्ली छोड़कर किसी को न जाने दिया जाए।