नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या भूमि विवाद पर शनिवार को दिये अपने ऐतिहासिक फैसले के साथ यह भी स्पष्ट किया है कि भगवान राम का जन्म उसी स्थान पर हुआ था जहाँ बाद में बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय खंडपीठ ने अपने फैसले के साथ एक परिशिष्ट संलग्न किया है जिसमें इस बात पर विचार किया गया है कि भगवान राम की जन्मभूमि कहाँ थी। इसमें कहा गया है, ‘‘मस्जिद के निर्माण से पहले से ही हिंदुओं की मान्यता और विश्वास था कि भगवान राम का जन्म उसी स्थान पर हुआ था जहाँ बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया है। यह मान्यता और विश्वास अदालत में पेश दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्यों से प्रमाणित होता है।’’
शीर्ष अदालत ने कहा है कि हमेशा से हिंदुओं की मान्यता और विश्वास यह है कि भगवान राम का जन्म उसी स्थान पर हुआ था जहाँ तीन गुंबदों वाली बाबरी मस्जिद थी। ब्रितानी शासनकाल में लोहे की जाली लगाकर मस्जिद के भीतरी और बाहरी प्रांगणों को अलग किया गया ताकि हिंदूओं को अंदर जाने से रोका जा सके। इसके बाद हिंदुओं ने बाहरी प्रांगण में राम चबूतरे पर पूजा-अर्चना आरंभ कर दी। खंडपीठ ने कहा, ‘‘ यह सच्चाई है कि लोहे की जाली लगाकर हिंदुओं को मस्जिद के बाहर रखकर यह नहीं कहा जा सकता कि इसने भगवान राम के जन्म स्थान के बारे में उनकी मान्यता और विश्वास को बदल दिया है। बाहरी प्रांगण में राम चबूतरे पर भगवान राम की उनकी पूजा सांकेतिक थी।’’ उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में राम जन्म भूमि पर ‘राम लला’ का दावा मंजूर करते हुये वहाँ मंदिर निर्माण के लिए एक न्यास के गठन का आदेश दिया है। साथ ही मस्जिद निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पाँच एकड़ जमीन आवंटित करने का भी आदेश दिया गया है।