नई दिल्ली। विराट कोहली अब केवल भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान हैं। उनसे वनडे टीम की कप्तानी छीन ली गई है। BCCI ने 8 दिसंबर को प्रेस रिलीज के जरिए जानकारी दी कि रोहित शर्मा अब टी20 के साथ ही वनडे टीम के कप्तान भी होंगे। बीसीसीआई ने यह जानकारी नहीं दी कि कोहली खुद पद से हटे या उन्हें हटाया गया। लेकिन जिस तरीके से रोहित के कप्तान बनने की जानकारी दी गई उससे साफ था कि कोहली को हटाया गया है। विराट ने कुछ महीनों पहले ही टी20 टीम की कप्तानी छोड़ी थी। तब माना जा रहा था कि वनडे में भी रोहित ही कप्तान बनेंगे।
अब दक्षिण अफ्रीका दौरे से ठीक पहले कप्तानी में बदलाव का फैसला बीसीसीआई ने लिया है। कोहली को कप्तानी छोड़ने का समय दिया गया था। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तब बीसीसीआई ने खुद ही आगे बढ़ते हुए रोहित को वनडे का मुखिया बना दिया। कोहली की कप्तानी का दौर खुद में एक शानदार दास्तां रहा है। महेंद्र सिंह धोनी ने अपने नेतृत्व में कोहली को तैयार किया और फिर जब उन्हें लगा कि समय आ गया तो उन्होंने सफेद गेंद की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी। अगले दो सालों में कोहली टीम के ताकतवर कप्तान बन गए जो अपने हिसाब से चीजें करते थे।
फिर उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित की गई प्रशासकों की समिति थी जिन्होंने उनकी हर मांग (कुछ सही और कुछ गलत) को पूरा किया। फिर पारंपरिक प्रशासकों की वापसी हुई जिसमें बहुत ताकतवर सचिव और अध्यक्ष हैं जो खुद ही सफल कप्तानी के बारे में जानकारी रखते हैं। अंत में सफेद गेंद के दोनों फॉर्मेट के लिए दो अलग-अलग कप्तानों की कोई जगह नहीं रही और विराट कोहली के हाथ से वनडे कप्तानी ले ली गई। भारतीय क्रिकेट को करीब से देखने वालों को जो घटनाक्रम घटा उससे आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि कोहली ड्रेसिंग रूम में सबसे मशहूर शख्स नहीं थे। कोहली काफी नपी-तुली बात कहते हैं लेकिन लगातार यह सुना जाता रहा है कि वे खिलाड़ियों के कप्तान नहीं हैं। दो साल पहले तक टीम इंडिया का हिस्सा रहे एक खिलाड़ी ने पीटीआई को बताया, ‘विराट की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह किसी पर भरोसा नहीं करते। वह स्पष्ट बात कहते हैं लेकिन दिक्कत यह है कि वह कम्युनिकेशन ही नहीं रखते हैं।’
पूर्व कोच रवि शास्त्री ने हालिया इंटरव्यूज में सलाह दी थी कि कोहली को अपनी बैटिंग पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन क्या उन्होंने कोच रहते हुए कोहली को मैन मैनेजमेंट स्किल्स पर काम करने को कहा था? शायद नहीं क्योंकि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। अनिल कुंबले ने कोशिश की थी और वह बुरी तरह नाकाम रहे थे। ऐसे कई वाकये हैं जहां खिलाड़ियों ने एक-दो नाकामी के बाद ही असुरक्षा जाहिर की। कुलदीप यादव का केस कोहली की नेतृत्व क्षमता का सबसे बुरा उदाहरण है। कुलदीप जैसा टैलेंटेड खिलाड़ी आज टीम में ही नहीं है। कुलदीप ही नहीं कई ऐसे खिलाड़ी रहे हैं जिन्हें टीम में अपनी भूमिका तक नहीं पता थी।कोहली को जब कप्तानी मिली तो वह सबसे अलग-थलग हो गए। कई सालों तक जूनियर खिलाड़ियों को रोहित के रूप में बड़ा भाई मिला जो उनके कंधे पर हाथ रखकर भरोसा देते थे। वह उन्हें बाहर खाने पर लेकर जाते और जब अच्छा नहीं कर रहा होता तब उनसे बात करते। अब कोहली केवल टेस्ट कप्तान हैं। वे अब टीम के निर्विवादित मुखिया नहीं हैं। देखना होगा कि इन बदले हुए हालात में वे किस तरह से खुद को ढालते हैं।