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यूपी का वो मुख्यमंत्री, जिसका करियर अमिताभ बच्चन ने खत्म कर दिया

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 18 2020 11:21AM | Updated Date: Mar 18 2020 11:22AM
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मुंबई। कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने आखिरी दिनों में कांग्रेस को मिटाने की कसम खाई थी। अपने बेटे विजय बहुगुणा को मैदान में उतारा था विजय उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी बने। भाजपा में शामिल हुए हेमवती की बेटी रीता बहुगुणा भी 2016 में भाजपा में शामिल हो गईं आखिर ऐसा क्या था कि यूपी की पहली विधानसभा में शामिल हुए चाणक्य कांग्रेस को बर्बाद करने पर तुले थे। कांग्रेस से वो यूपी के मुख्यमंत्री भी रहे थे और केंद्र में भी मंत्री रहे थे इतनी नाराजगी क्यों।
 
1942 के आंदोलन में इनामी क्रांतिकारी थे, यूपी की राजनीति में नामी नेता बने 13 अप्रैल, 1919 को जालियांवाला बाग हुआ था और 25 अप्रैल, 1919 को तत्कालीन पौड़ी जिले के बुधाणी गांव में हेमवती नंदन का जन्म हुआ था वो दौर था आर्यसमाज का, जो भारतीय परंपरा को फिर से जीवित करना चाह रही थी वो दौर था गांधी का, जो भारत की राजनीति को राजे-रजवाड़ों की लड़ाई से अलग गांववालों के हाथ में देने जा रहे थे तो उसी गर्व से बने डीएवी कॉलेज से हेमवती की भी पढ़ाई हुई थी पढ़ाई के दौरान ही हेमवती का संपर्क लाल बहादुर शास्त्री से हो गया था तो जाहिर सी बात है कि देश की राजनीति में इंटरेस्ट आ गया।
 
1936 से 1942 तक हेमवती नंदन छात्र आंदोलनों में शामिल रहे थे वो वक्त ही ऐसा था कि जिससे जितना हो सकता था, वो करता था. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हेमवती के काम ने उन्हें लोकप्रियता दिला दी अंग्रेजों ने हेमवती को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 5 हजार का इनाम रखा था आखिरकार 1 फरवरी 1943 को दिल्ली के जामा मस्जिद के पास हेमवती गिरफ्तार हुए थे. पर 1945 में छूटते ही फिर बैंड बजा दी थी अंग्रेजों की तुरंत ही देश भी आजाद हो गया। उसके बाद हेमवती यूपी की राजनीति में सक्रिय हो गए 1952 से वो लगातार यूपी कांग्रेस कमिटी के सदस्य रहे 1957 में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी रहे ऐसा माना जाता है
 
कि सरकार जिसको मंत्री नहीं बना पाती, उसे ये पद दे देती है पर इससे ये पता चलता है कि हेमवती को इग्नोर करना सरकार के लिए आसान नहीं था 1958 में प्रमोशन हुआ सरकार में श्रम और उद्योग विभाग के उपमंत्री रहे फिर 1963 से 1969 तक यूपी कांग्रेस महासचिव के पद पर रहे. 1967 में आम चुनाव के बाद बहुगुणा को अखिल भारतीय कांग्रेस का महामंत्री चुना गया इसी साल कांग्रेस में समस्या पैदा हो गई चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी फिर 1969 में इंदिरा गांधी को लेकर ही बवाल हो गया कांग्रेस दो भाग में टूट गई त्रिभुवन नारायण सिंह जैसे नेता कामराज के सिंडिकेट ग्रुप में चले गए पर कमलापति त्रिपाठी और हेमवती नंदन बहुगुणा इंदिरा गांधी के साथ चले गये त्रिभुवन नारायण सिंह मुख्यमंत्री रहते हुए उपचुनाव में एक पत्रकार रामकृष्ण द्विवेदी से हार गए इसके बाद कमलापति त्रिपाठी को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया पर पीएसी विद्रोह के चलते उनको भी पद छोड़ना पड़ा विद्रोह के अलावा कमला सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप थे।
 
कमलापति धोती पहनते थे महंत लगते थे. प्रशासन गड़बड़ हो गया था तो ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो शासन भी संभाले और इंदिरा के सामने चूं भी ना करे हेमवती नंदन 1971 में पहली बार सांसद बने थे पर उनको उम्मीद थी कि इंदिरा का लगातार सपोर्ट करने की वजह से उनको कोई ताकतवर पद मिलेगा पर संचार विभाग में जूनियर मिनिस्टर ही बन पाए थे उस वक्त ये इतने नाराज हुए थे कि 15 दिन तक मंत्री का चार्ज ही नहीं लिया था
 
तो कुढ़कर इंदिरा ने इनको स्वतंत्र प्रभार दे दिया था इसके अलावा हेमवती को जगजीवन राम कैंप का माना जाता था तो इंदिरा गांधी को सलाह दी गई कि इनको यूपी का मुख्यमंत्री बना दीजिए, दिलचस्प बात ये है कि कमलापति और हेमवती के रिश्ते बहुत अच्छे थे हेमवती अपने पिता के अलावा सिर्फ कमलापति के ही पांव छूते थे एक बार त्रिपाठी के कहने पर बहुगुणा भांग खा कर लोटे भी थे कमला ने भी बहुगुणा के नाम पर हां कर दी बहुगुणा ने आते ही यूपी के हालात सम्भाले और छह महीने बाद राज्य में अधमरी हो चुकी कांग्रेस को चुनाव भी जिता दिया. कहा तो ये भी जाता है कि विपक्ष के दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्ता की छल-बल लगाकर ज़मानत भी ज़ब्त करवा दी थी किंवदंतियां हैं
 
कि चन्द्रभानु गुप्ता उनसे पूछते थे- रे नटवर लाल, हराया तो ठीक, लेकिन ज़मानत कैसे ज़ब्त करायी मेरी, ये तो बता बच्चन ने बहुगुणा को 1 लाख 87 हजार वोट से हराया बहुगुणा कांग्रेस छोड़कर लोकदल में आये थे यहां देवीलाल और शरद यादव ने उन पर गंभीर आरोप लगाने शुरू कर दिये, जिससे वो अंदर से टूट गये थे इस हार के बाद बहुगुणा ने राजनीति से संन्यास ले लिया पर्यावरण संरक्षण के कामों में लग गये 3 साल बाद अमिताभ ने सीट छोड़ दी, राजनीति से संन्यास ले लिया और उसी दौरान हेमवती नंदन बहुगुणा की मौत हो गई क्या कहें राजनीति का। बहुगुणा की एक बाईपास सर्जरी हो चुकी थी डॉक्टरों ने कहा कि दूसरी कराने की जरूरत नहीं है
 
राजनीति से दूर रहेंगे तो आराम से रहेंगे. लेकिन बहुगुणा को आराम से बैठना गवारा नहीं था उन्होंने डॉक्टरों से कह दिया कि बहुगुणा समोसे खाने और मजे करने के लिए पैदा नहीं हुआ है ऑपरेशन तो करवाऊंगा रीता बहुगुणा जोशी हेमवती नंदन की बेटी हैं 67 साल की रीता यूपी कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी हैं पर 2016 में उन्होंने अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा जॉइन कर ली रीता बहुगुणा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफेसर रह चुकी हैं
 
हेमवती नंदन यहीं से पढ़े थे रीता समाजवादी पार्टी की ओर से 1995 से 2000 तक इलाहबाद की मेयर भी रहीं राष्ट्रीय महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकीं रीता ने बाद में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस और उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी की कमान भी संभाली फिर 2007 से 2012 के बीच यूपी कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं और इसी दौरान बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ टिप्पणी करने के चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा 2012 में उन्होंने लखनऊ कैंट से विधानसभा चुनाव जीता 2014 में उन्होंने लखनऊ सीट से लोकसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमाया लेकिन हार का सामना करना पड़ा 2017 में वो भाजपा से लखनऊ कैंट से उम्मीदवार हैं।
 
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