हिंदू धर्म में कुलदेवी या देवता हर घर में होते हैं। कुल देवी या देवता अलग-अलग होते हैं। पुराणों में इनकी पूजा करना बहुत जरूरी माना गया है। जिस तरह घर में अन्य देवोया देवता की पूजा होती है, कुल देवी या देवता की पूजा भी करने का विधान है। किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए जिस तरह गणपति जी प्रथम पूजनीय माने गए हैं, उसी तरह से कुल देवी या देवता की पूजा भी अनिवार्य रूप करनी चाहिए। कुल देवी या देवता की पूजा हर घर में होनी बहुत जरूरी होती है।
कुल देवी या देवता की अनदेखी या उनकी पूजा न करना पुराणों में बहुत ही गलत माना गया है। पुराणों में कुल देवी या देवता की पूजा करना हर दिन जरूरी होता है। हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज माने गए हैं। उनके गोत्र का निर्धारण भी उन्हीं के नाम पर हुआ है। हर जाति वर्ग, किसी न किसी ऋषि की संतान मानी गई हैं और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेवी या देवता के रूप में पूज्य माने गए हैं।
पूर्व काल से ही हर पूर्वज अपने कुल के जनक की पूजा करते आए हैं ताकि उनके घर-परिवार और कुल का कल्याण होता रहे। कुल देवी या देवता आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति से कुलों की रक्षा करते हैं। जिससे नकारात्मक शक्तियों और ऊर्जाओं का खात्मा होता रहे। कुल देवी या देवता की पूजा नहीं करने से कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नजर नहीं आता लेकिन धीरे-धीरे जब कुल देवी या देवता का घर-परिवार पर से सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाएं, नकारात्मक ऊर्जा, वायव्य बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है।
यही नहीं घर-परिवार की उन्नति रुकने लगती है। संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, अशांति का वास होने लगता है। ग्रह-नशत्र का मेल अच्छा होते हुए भी परिवार का कल्याण नहीं होता। कुल देवता या देवी घर का सुरक्षा आवरण होते हैं जो बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा और संकट से सबसे पहले जूझते हैं। उसे घर में प्रवेश करने से रोकते हैं। पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति कुल देवी-देवता सचेत करते रहते हैं। यदि इन्हें घर-परिवार में मान-सम्मान नहीं मिलता या इनकी पूजा नहीं की जाती तो यह नाराज हो जाते हैं और अपनी सारी शक्तियों से घर को विहिन कर देते हैं।
ऐसे में आप किसी भी ईष्ट की आराधना करें, वह उन तक नहीं पहुंचती। बाहरी बाधाएं, अभिचार, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा घर में प्रवेश करने लगती है और जीवन नर्क समान बना देती हैं। कुल देवी-देवता की पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर की जाती है। हर परिवार का अपना समय निर्धारित होता है। साथ ही शादी-विवाह-संतानोत्पत्ति आदि पर भी इनकी विशिष्ट पूजा की जानी चाहिए।