भगवान कृष्ण रास रचाने में माहिर है। द्वापर युग के समय जब भगवान श्री कृष्ण ने धरती में जन्म लिया तब देवी-देवता अपना रूप बदलकर समय-समय पर उनसे मिलने धरती पर आने लगे। वहीं इस दौरान भगवान शिव भी कृष्णा से मिलने के लिए धरती पर आने के लिए उत्सुक हुए लेकिन वह यह सोच कर कुछ क्षण के लिए रुके की यदि वे श्री कृष्ण से मिलने जा रहे हैं तो उन्हें कुछ उपहार भी अपने साथ ले जाना चाहिए।
भगवान कृष्णा की बांसुरी : ऋषि दधीचि वही महान ऋषि है जिन्होंने धर्म के लिए अपने शरीर को त्याग दिया था व अपनी शक्तिशाली शरीर की सभी हड्डियां दान कर दी थी। वहीँ उन हड्डियों की सहायता से विश्कर्मा ने तीन धनुष पिनाक, गांडीव, शारंग तथा इंद्र के लिए व्रज का निर्माण किया था।
शिव जी ने उस हड्डी को घिसकर एक सुंदर एवं मनोहर बांसुरी का निर्माण किया। जब शिव जी भगवान श्री कृष्ण से मिलने गोकुल पहुंचे तो उन्होंने श्री कृष्ण को भेट स्वरूप वह बंसी प्रदान की। उसी के बाद से भगवान श्री कृष्ण उस बांसुरी को अपने पास रखते हैं।