झांसी। उत्तर प्रदेश में झांसी जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां जाने के बाद आपको विश्वास ही नहीं हो पाता कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं या आधारभूत सुविधाएं किस चिड़िया का नाम है या ऐसा कोई शब्द होता भी या नहीं। यह वह गांव है जिसे आजादी के बाद से आज तक न तो पानी मिला, न बिजली, सड़क और न ही पक्के आवास।
जिले के मऊरानीपुर तहसील में स्थित साजेरा वह गांव है जो अपनी बदहाली की दास्तां चीख चीख का सुना रहा है लेकिन न तो किसी दल या नेता और न ही इस क्षेत्र के अधिकारियों तक उनकी आवाज पहुंच पा रही है। कटेरा गांव पंचायत में आने वाले सिजारा गांव में करीब 500 परिवार रहते हैं जिनके पास रहने के लिए न तो पक्के मकान हैं पूरे गांव में खपरैल की छतों वाले कच्चे घरों में बिना बिजली के यह लोग किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इस गांव में आने के लिए जो रास्ता है उस पर सड़क के नाम पर टूटे हुए पत्थर पड़े हैं। यहां खेत तो हैं लेकिन पानी नहीं है जब लोगों को पीने के लिए पानी नहीं है तो खेतों में सिंचाई के लिए कहां से आयेगा। बच्चे पढ़ना तो चाहते हैं लेकिन समझ नहीं पाते कि अंधेरे मे पढ़ाई कैसे की जाए। महिलाएं अंधेरे घरों में धुएं के बीच आज भी चूल्हे पर भोजन बनाने को मजबूर हैं। आजादी के बाद से एक के बाद एक दलों की सरकारें आयीं और गयीं, वोट के लिए हर दल के नेता यहां पहुंचे तो जरूर पर जीत के बाद विकास तो दूर की बात इंसान को गरिमापूर्ण तरीके से जीवन यापन के लिए आवश्यक आधारभूत जरूरतें भी इस गांव के लोगों तक नहीं पहुंच पायी हैं।
----गांव के लोगों को नहीं पता कौन होते हैं प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री
गांव में 150 परिवार आदिवासियों के लगभग 150 परिवार अन्य पिछड़ा वर्ग और 200 परिवार अनुसूचित जाति के लोगों के हैं। एक ग्रामीण रामरतन ने बताया कि वोट लेने के लिए तो नेता उनके गांव में जरूर आते हैं और वादा करते हैं कि जीतने के बाद गांव के लोगों की सभी आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा किया जायेगा लेकिन जीतने के बाद तो वह राजा बन जाते हैं फिर हम बदहालों की सुध लेना तो दूर कोई हमारे बारे में पूछना या बात भी करना नहीं चाहता।
अगर वास्तव में किसी दल के पास देश में गरीब के आंसू पोंछने या उनकी बदहाली को खुशहाली में बदलने का सच्चा जज्बा होता तो आज गांव के रामरतन को यह कहने की जरूरत नहीं होती कि हमारे जो भी प्रधानमंत्री हैं या मुख्यमंत्री हैं कौन हैं हमें तो नहीं पता लेकिन हम उनसे कहते कि एक बार हमारे गांव को भी देख लो। हमें भी बिजली दे दो ताकि हम और हमारी आने वाली पीढ़ी भी जाने कि इस देश में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी कोई होता है।
गांव की एक बच्ची शीलू ने बताया कि उसे पढ़ना बहुत अच्छा लगता है लेकिन दिन में ही उसके लिए पढ़ पाना संभव है और यह समय परिवार के लिए पानी ढोकर लाने में मदद करते और दूसरे काम में निकल जाता है और रात में अंधेरे में पढ़ाई का सवाल ही नहीं।
---आज भी जिंदा है बदलाव की उम्मीद
चूल्हे पर धुंआ फांकती भोजन पकाती रामरती ने बताया कि उसे कोई जानकारी नहीं है कि किसी योजना में सिलेंडर और गैस चूल्हा मिल रहा है वह तो जब से ब्याह के यहां आयी है तभी से यूं ही धुंए के बीच अंधेरे में खाना बना रही है। गांव का आधुनिक समय ,आधुनिक समाज और आधुनिकता नाम की किसी चीज से दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं है। कुएं सूखे पड़े हैं हैंडपंप से पानी उतर चुका है। घर की महिलाएं और बच्चियों का ज्यादातर समय परिवार के लिए पानी दूर दराज के क्षेत्रों से ढोकर लाने में ही बीत जाता है।
यह गांव पिछले लगभग 70 वर्षों से सब कुछ हारा हुआ है लेकिन इस घोर निराशा के बीच अगर कोई एक चीज आज भी जिंदा है तो वह है गांव में लोगों की उम्मीद। लोगों में और बच्चों को उम्मीद है कि एक दिन यह हालात बदलेंगे और उनके गांव में आने के लिए पक्की सड़क होगी, सबको पीने का साफ पानी घर पर ही मिलेगा, बिजली होगी तो परिवार साथ बैठकर टीवी देखेंगे, घरों में धुंआ नहीं महिलाएं भी गैस पर काम करेंगी।