राजस्थान के अलवर जिले में स्थित भानगढ़ किला कि 16वीं शताब्दी में यहाँ बसा था। बसने के बाद तीन सदियों तक भानगढ़ खूब फलता रहा। लेकिन उसके बाद कुछ ऐसी घटना हुई जिसने इस किले को उजाड़ दिया। उसके बाद से यह वीरान हो गया और यहाँ पर भूत प्रेत आत्माओ का बसेरा हो गया। वैसे इस किले के वीरान होने के पीछे दो घटनाये सुनने को मिलती है जिनमे से कोनसी सही है यह बताना मुश्किल है।
इन किस्सों को सुनकर लोग मायावी और रहस्यों से भरे इस किले की ओर खीचें चले आते हैं। किले की एक दीवार पर भारतीय पुरातत्व विभाग का बोर्ड लगा है। जहां साफ साफ शब्दों में लिखा है कि सूर्यास्त के बाद प्रवेश वर्जित है। भानगढ़ के किले व नगर के उजड़ने की प्राचीन कहानी के अनुसार रत्नावली को भानगढ़ की रानी बताया गया है तो किसी कहानी में भानगढ़ की सुंदर राजकुमारी। दोनों ही कथाओं में इस पात्र के साथ सिंघिया नामक तांत्रिक का नाम जरूर जुड़ा हुआ है। प्रचलित कहानी के अनुसार सिंघिया महल के पास स्थित पहाड़ पर तांत्रिक क्रियाएं करता था।
सिंघिया रानी रत्नावली की खूबसूरती पर फिदा था। एक दिन भानगढ़ के बाजार में उसने देखा कि रानी की एक दासी रानी के लिए केश तेल लेने आई है। सिंघिया ने उस तेल को अभिमंत्रित कर दिया, ताकि वह तेल जिस किसी पर लगेगा उसे वह तेल उसके पास ले आएगा। लोगों की माने तो रानी ने जब तेल को देखा तो वह समझ गई कि यह तेल सिंघिया द्वारा अभिमंत्रित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि रानी भी बहुत सिद्ध थी, इसलिए उसने पहचान कर ली और दासी से उस तेल को फेंकने के लिए कहा। दासी ने उस तेल को चट्टान पर गिरा दिया।
इसके बाद पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चट्टान उड़कर सिंधिया की तरफ रवाना हो गई। सिंधिया ने चट्टान को देखकर अंदाजा लगाया कि रानी उस पर बैठकर उसके पास आ रही है। इसलिए उसने चट्टान को सीधे अपनी छाती पर उतारने का आदेश दिया। जब चट्टान पास आई तो उसे असलियत पता चली और उसने आनन-फानन में चट्टान उसके ऊपर गिरने से पहले भानगढ़ उजाड़ने का श्राप दे दिया और चट्टान के नीचे दब कर मर गया। सिद्ध रानी को यह सब समझने में देर नहीं लगी और उसने तुरंत नगर को खाली करने का आदेश दे दिया। इस तरह नगर खाली होकर उजाड़ हो गया और रानी तांत्रिक के श्राप की भेंट चढ़ गई।
आसपास के गांव के लोगों को यकीन है कि सिंघिया के श्राप की वजह से ही रत्नावली और भानगढ़ के बाकी के निवासियों की रूहें अब भी किले में भटकती है। लोगों की माने तो रात के वक्त इन खंडरों में जाने वाला कभी वापस लौटकर नहीं आता। अब भानगढ़ के इस किले की कहानी में कितनी सत्यता है यह तो नहीं पता पर यहां के स्थानीय लोगों की बातें और किले की एक दीवार पर भारतीय पुरातत्व विभाग का बोर्ड लगना कि 'सूर्यास्त के बाद प्रवेश वर्जित है' इस बात की ओर इशारा करती है कि यहां कुछ ऐसे तत्व हैं, जिससे यहां भय का प्रकोप अब तक जारी है।