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पांण्डेय जी 'गोरैया वाले', जानिए प्रेम के पक्षी प्रेम के बारे में

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 19 2018 3:47PM | Updated Date: Mar 19 2018 3:47PM
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लखनऊ। विकास के नाम पर दुनियाभर में प्रकृति के साथ हो रही खिलवाड़ का खामियाजा बेजुना पशु-पक्षियों को भुगतना पड़ रहा है। पशु-पक्षियों की कई ऐसी प्रजातियां हैं जो पूरी तरह विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्ती की कगार पर हैं। इनमें से एक प्रजाति गोरैया है। जिनके चहचाने की आवाजें अब बहुत ही कम सुनने को मिलती हैं। इस पक्षी के अस्तित्व को संकट में डालने का जिम्मेदार मानव प्रजाति द्वारा शहरीकरण, प्रदूषण,रासायनिक खाद का बढ़ता इस्तेमाल और विकिरण जैसी तमाम वजह हैं। मानव प्रजाति अपनी सुख-सुविधाओं में इतनी मशगूल हो चुकी है कि उसे धरती पर रहने वाले अन्य जीवों की कोई फिक्र ही नहीं है, लेकिन मानव प्रजाति के इस उदासीनतावादी युग के एक परिवार ऐसा भी है जो नन्ही गौरैया के अस्तित्व को बचाने में लगा हुआ है। 
वर्ष 2003 में उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अभियंत्रण विभाग से सेवानिवृत्त हो चुके प्रेम शंकर पांडेय गोरैया से इस कदर घुल मिल गये हैं कि उन्हे नौकरीपेशा जीवन के गुजरने की कमी ही महसूस नहीं होती। इंदिरा नगर में करीब 1500 वर्ग फीट के उनके मकान में गोरैया के लिये भरपूर जगह है। मकान के कई हिस्सों में घोसला बना कर रह रही गोरैया की चहचहाट सुनकर पांडेय दंपती की नींद टूटती है। नित्य क्रियाक्रम के बाद पांडेय जी नाश्ता करने से पहले गौरैया को गेंहू और चावल के दाने परोसते हैं। 
छत, मुंडेर समेत मकान के अलग अलग हिस्सों में फैले दानों को चुनने के लिये चिड़ियों का झुंड के यहां आता है। आमतौर पर किसी को आते देख गोरैया फुर्र से उड़ जाती हैं मगर पांडेय दंपती चिड़ियों के समूह के बीच कुर्सी डाल कर बैठे रहते हैं और चिड़िया बेखौफ होकर बड़े चाव से दाने चुगती हैं।
---पाण्डेय को बचपन से ही है पक्षियों से प्रेम
गोरैया के प्रति उपजे प्रेम के बारे में 74 वर्षीय बुजुर्ग बताते हैं कि पक्षियों के प्रति उनका लगाव बचपन से रहा है। ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े पांडेय स्कूल से आते-जाते घने पेड़ों पर फुदकती गोरैया को घंटो निहारते रहते थे। इंटरमीडियेट की परीक्षा पास करने के बाद उनका आईआईटी मद्रास में चयन हो गया। बाद में उन्होंने आईआईटी मुबंई से एमटेक किया। जीवन की इस आपाधापी के बीच उनका पक्षी प्रेम अरसे तक सुस्त पड़ा रहा।
मंडल अभियंता के पद से रिटायर हो चुके पांडेय ने बताते हैं कि पुत्र विदेश में नौकरी करता है और परिवार समेत वहीं बस गया जबकि दो पुत्रियों का भी विवाह हो चुका है। मकान में वह पत्नी के साथ रहते हैं। अपने मकान का एक तिहाई हिस्से को उन्होंने कच्चा छोड़ रखा है ताकि बरसात में जल संचयन हो सके। इस कच्ची जमीन पर उन्होंने पेड़ पौधे लगा दिये हैं।
नौकरी के दौरान उनके घर में इक्का-दुक्का गोरैयों के घोसले थे जिन्हें उन्होंने कभी हटाने की कोशिश नहीं की जबकि सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने खाली समय का उपयोग गोरैयों को दाना पानी देने में गुजारना शुरू कर दिया। देखते ही देखते गोरैयों का रूख उनके आवास की ओर बढ़ता गया। मकान के मुख्य द्वार के सामने आम का एक घना वृक्ष होने से चिड़ियों को उनके घर में घोसले बनाने में सुविधा भी हुयी।
---प्रेम के 'प्रेम' को देखकर पड़ोसियों ने भी दी पक्षियों को घर बनाने की इजाजत
गोरैया के करीब 30 घोसले पाण्डेय के मकान में अलग-अलग कोनों पर हैं। गोरैयों की देखभाल में उनकी पत्नी भी उनका भरपूर सहयोग करती हैं। पांडेय जी की देखादेखी पड़ोस के कई लोगों ने गोरैयों को अपने अपने घर में आशियाना बनाने की इजाजत दे दी है जिसके चलते यह क्षेत्र गोरैयों की आबादी से भरपूर हो गया है।
सेवानिवृत्ति अधिकारी का कहना है कि बढ़ते शहरीकरण और रासायनिक प्रदूषण और रेडिऐशन के चलते इन सुन्दर चिड़िया की संख्या में भारी कमी आ रही है। अनाजों में रासायनिक दवाइयां की वजह से गोरैया पक्षी की प्रजाति पर इसका बुरा असर पड़ा है और ये धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर है। मोबाइल टॉवर से निकलने वाले विकिरण इनके प्रजनन व अण्डे देने की क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं। इसके अलावा फसलों में कीटनाशकों के इस्तेमाल से ऐसे कीड़े नष्ट हो गए हैं जिन्हे गोरैया अपने बच्चों को खिलाती है।
 पांडेय ने कहा कि पर्यावरण संतुलन के लिये मददगार इस अदभुद प्राणी के संरक्षण के लिये आम, पीपल, बरगद जैसे पेड़ लगाने चाहिए जिन पर गोरैया या दूसरे पक्षी घोंसला बना सकें। गोरैया के लिए थोड़ा वक्त निकालने पर ये फिर से घरों के आस-पास चहचहाना शुरु कर सकती हैं। उनके लिए सुबह-शाम निश्चित समय और जगह पर दाना-पानी दें।
---हम ऐसे बचा सकते हैं गोरैया का अस्तित्व
कानपुर प्राणि उद्यान में अपर निदेशक के पद पर रहे केवल प्रसाद का कहना है कि किसी भी प्रजाति को खत्म करना हो तो उसके आवास और उसके भोजन को खत्म कर दो, कुछ ऐसा ही गोरैया के साथ हुआ। शहरीकरण, गांवों का बदलता स्वरूप, कृषि में रसायनिक खादें एंव जहरीले कीटनाशक गोरैया के खत्म होने के लिए जिम्मेदार बने हैं।
उन्होंने कहा कि जंगल चिड़ियों की देन है, ये परिन्दे ही जंगल लगाते हैं, तमाम प्रजातियों के वृक्ष तो तभी उगते हैं, जब कोई परिन्दा इन वृक्षों के बीजों को खाता है और वह बीज उस पक्षी की आहारनाल से पाचन की प्रक्रिया से गुजर कर जब कही गिरते हैं तभी उनमें अंकुरण होता है, साथ ही फलों को खाकर धरती पर इधर -उधर बिखेरना और परागण की प्रक्रिया में सहयोग देना इन्हीं परिन्दों का अप्रत्यक्ष योगदान है।
कीट-पंतगों की तादाद पर भी यही परिन्दे नियन्त्रण करते हैं, कुल मिलाकर पारिस्थितिकी तन्त्र में प्रत्येक प्रजाति का अपना महत्व है, हमें उनके महत्व को नजरन्दाज करके अपने पर्यावरण के लिए हम अपनी गैर-जिम्मेदाराना भूमिका अदा कर रहे हैं।
प्रसाद ने कहा कि अपने घरों के अहाते और पिछवाड़े विदेशी नस्ल के पौधों के बजाए देशी फलदार पौधे लगाकर इन चिड़ियों को आहार और घरौदें बनाने का मौका दे सकते हैं। साथ ही जहरीले कीटनाशक के इस्तेमाल को रोककर, इन वनस्पतियों पर लगने वाले परजीवी कीड़ो को पनपने का मौका देकर इनके चूजों के आहार की भी उपलब्धता करवा सकते हैं, क्यों कि गोरैया जैसे परिन्दों के चूजे कठोर अनाज को नही खा सकते, उन्हें मुलायम कीड़े ही आहार के रूप में आवश्यक होते हैं।
अपने घरों में सुरक्षित स्थानों पर गौरैया के घोसले बनाने वाली जगहों या मानव-जनित लकड़ी या मिट्टी के घोसले बनाकर लटकाये जा सकते है। इसके अलावा पानी और अनाज के साथ पकाए हुए अनाज का विखराव कर हम इस चिड़िया को दोबारा अपने घर-आंगन में बुला सकते हैं।
 
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