कोलंबो। अमेरिका ने श्रीलंका के राष्ट्रपति को राजनीतिक संकट समाप्त करने का एक सुझाव दिया है। उसने कहा है कि राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेना संसद का सत्र बुलाएं और लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रतिनिधियों को देश की सरकार चुनने का अवसर दें। गौरतलब है कि रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से अचानक बर्खास्त किए जाने के बाद से राजनीतिक संकट गहरा गया है।
विदेश मंत्रालय के उपप्रवक्ता राबर्ट पैलाडिनो ने पत्रकारों को बताया, हम श्रीलंका के राष्ट्रपति का आह्वान करते हैं कि वह अपनी संसद दोबारा बुलाएं और लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित लोगों को श्रीलंकाई कानून एवं विधिवत प्रक्रिया के अनुसार अपनी सरकार के नेतृत्व के चयन का उत्तरदायित्व निभाने दें। उन्होंने कहा कि अमेरिका श्रीलंका के घटनाक्रम पर लगातार नजर बनाए हुए है। उसने सभी पक्षों से निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने की अपील की है।
अमेरिकी प्रवक्ता ने कहा, हम उम्मीद करते हैं कि नेतृत्व चाहे किसी के भी हाथ में हो श्रीलंका सरकार मानवाधिकारों, कानून के शासन, सुधार, जवाबदेही, न्याय और सुलह की अपनी प्रतिबद्धताओं को बरकरार रखेगी। प्रवक्ता ने दोहराया कि राष्ट्रपति को स्पीकर के साथ सलाह-मशविरा करके तत्काल संसद का सत्र बुलाना चाहिए ताकि लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित प्रतिनिधि यह फैसला कर सकें कि अपनी सरकार का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी वे किसे देना चाहते हैं। पैलाडिनो ने इन कथित आरोपों पर किसी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया कि श्रीलंका में अनिश्चितता के पीछे चीन है। उन्होंने कहा, मेरे पास आपके लिए आज कुछ विशेष नहीं है।
श्रीलंका में मौजूद हैं एक साथ दो प्रधानमंत्री
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेन ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को उनके स्थान पर नियुक्त किया है। हटाए गए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके पास बहुमत साबित करने को पर्याप्त संख्या बल है। इसलिए राष्ट्रपति ने आगामी 16 नवंबर तक संसद को निलंबित कर दिया ताकि उनके समर्थित राजपक्षे अविश्वास प्रस्ताव के लिए जरूरी संख्या बल जुटा सकें। हालांकि रविवार को स्पीकर ने विक्रमसिंघे को ही प्रधानमंत्री बताया। मौजूद समय में पड़ोसी देश श्रीलंका में दो प्रधानमंत्री एक साथ मौजूद हैं।
उठापटक की पृष्ठभूमि
श्रीलंका राजपक्षे के शासन में चीन के करीब आया। बीजिंग ने अरबों डॉलर की बड़ी परियोजनाओं में निवेश किया है। हालांकि विक्रमसिंघे की सरकार ने देश पर बढ़ते कर्ज से हलकान होती अर्थव्यवस्था को देखते हुए कुछ चीनी परियोजनाओं को रद कर दिया था। विकल्प के तौर पर उसने भारत की ओर देखना शुरू किया। देश में राष्ट्रपति चुनाव अगले साल होने वाले हैं और राजपक्षे के जीतने की उम्मीद है। माना जा रहा है कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती को देखते हुए संविधान में बदलाव करके राष्ट्रपति बनने की दो बार की अधिकतम सीमा को भी बढ़ाया जा सकता है।
पुराने समीकरण, नई राजनीति
राजपक्षे और सिरीसेन पूर्व राजनीतिक सहयोगी रहे हैं। सिरीसेन राजपक्षे सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे। मतभेद बढ़ने के बाद वह राजपक्षे की पार्टी से अलग हो गए थे और 2015 में उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया था। मामला अदालत में खत्म होने की उम्मीद है। क्योंकि श्रीलंका का संविधान राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री नियुक्त करने की इजाजत तो देता है, लेकिन उन्हें हटाने का अधिकार नहीं देता है। उन्हें तभी हटाया जा सकता है जब वह 225 सीटों वाली संसद का विश्वास खो दें।
राष्ट्रपति पक्ष की दलील
यूपीएफए का सरकार से समर्थन वापस लेते ही कैबिनेट का अस्तित्व खत्म हो गया। ऐसे में जब कोई कैबिनेट नहीं होती तो कोई प्रधानमंत्री नहीं होता है। तब राष्ट्रपति के पास उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने का अधिकार होता है जिसके पास बहुमत होता है।