जेनेवा। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बैशेले ने समलैंगिक संबंधों पर भारतीय उच्चतम न्यायालय के फैसले की आज तारीफ की। बैशेले ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् की 39वीं बैठक को संबोधित करते हुये सोमवार को यहाँ कहा "मैं भारत में उच्चतम न्यायालय द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटाने के फैसले की तारीफ करती हूँ। जैसा कि मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, दो वयस्कों के बीच सहमति से बने संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखना बेतुका है। इससे भेदभाव तथा उत्पीड़न होता है। मैं उम्मीद करती हूँ कि इस संबंध में दुनिया के अन्य देश भारत का अनुसरण करेंगे।
उच्चतम न्यायालय ने 06 सितम्बर को एक ऐतिहासिक फैसले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के प्रावधानों को मनमाना और अतार्किक करार देते हुए दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति रोंहिगटन एफ नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने धारा 377 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं का संयुक्त रूप से निपटारा करते हुए कहा कि एलजीबीटी समुदाय को वह हर अधिकार प्राप्त है, जो देश के किसी आम नागरिक को मिला हुआ है। न्यायालय ने हालांकि पशुओं और बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के मामले में धारा 377 के एक हिस्से को पहले की तरह अपराध की श्रेणी में ही बनाए रखा है।