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यहां से आता है उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम के लिए पैसा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 20 2018 10:59AM | Updated Date: Apr 20 2018 11:00AM
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प्योंगयांग। उत्तर कोरिया के पास एक के बाद एक मिसाइल बनाने के लिए पैसा कहां से आता है? करीब दो साल से कई देशों में चल रही एक जांच के अनुसार करीब डेढ़ लाख उत्तर कोरियाई लोग दूसरे देशों में रहकर पैसा कमाते हैं और यही पैसा किम जोंग उन के परमाणु कार्यक्रम में इस्तेमाल होता है। खुफिया तरीके से की गई यह जांच अलग-अलग देशों के कुछ पत्रकारों ने एक अंतरराष्ट्रीय समूह बनाकर की, जिसमें रूस, चीन और पोलैंड में काम कर रहे उत्तर कोरियाई लोगों से बात की गई। इस जांच के मुताबिक ये लोग जो कर रहे हैं उसे 21वीं सदी में होने वाली गुलामी माना जा सकता है।
 
उत्तर कोरिया के इन लोगों को हर साल एक बिलियन पाउंड, यानी करीब 9,335 करोड़ रुपए कमाने के लिए विदेश भेजा गया है। लंदन में उत्तर कोरिया के उप-राजदूत रहे, थे योंग-हो के मुताबिक इसमें से ज्यादातर पैसा किम जोंग-उन के परमाणु कार्यक्रम में लगाया जाता है। थे योंग हो कहते हैं, अगर ये पैसा शांति से देश की तरक्की के लिए खर्च होता तो अर्थव्यवस्था बेहतर हालत में होती। तो फिर सारा पैसा कहां गया? इसे किम और उनके परिवार के ऐशो-आराम, परमाणु कार्यक्रम और सेना पर खर्च किया गया। ये एक तथ्य है। इस जांच के दौरान पत्रकारों की एक अंडरकवर टीम रूस के व्लादिवोस्तोक शहर में फ्लैट ढूंढ़ रहे लोगों की तरह गई और वहां काम करने वाले उत्तर कोरियाई लोगों से मिली।
 
ये लोग अजनबियों के साथ खुलकर बात करने में हिचक रहे थे लेकिन एक मजदूर नाम छुपाने की शर्त पर कोरियाई पत्रकार से बात करने के लिए तैयार हो गया। उसने बताया कि यहां पर आपके साथ कुत्तों जैसा व्यवहार होता है और ढंग से खाने को भी नहीं मिलता। यहां रहते हुए आप खुद को इनसान मानना बंद कर देते हैं। इस मजदूर ने भी बताया कि उन्हें अपनी ज्यादातर कमाई किसी और को सौंपना होती है। कुछ लोग इसे पार्टी के प्रति हमारी जिम्मेदारी बताते हैं तो कुछ इसे क्रांति के प्रति फर्ज कहते हैं। जो ऐसा नहीं कर सकते, वे यहां नहीं रह सकते। बताया जाता है कि पोलैंड के शिपयार्ड में 800 उत्तर कोरियाई काम करते हैं, जिनमें से ज्यादातर वेल्डर और मजदूर हैं।
 
यह कहना है उ. कोरियाई लोगों का
जांच कर रही अंडरकवर टीम ने पोलैंड के स्तेचिन शहर में नौकरी देने वाली एक कंपनी के प्रतिनिधि के तौर पर वहां के एक गार्ड से मुलाकात की। उसके मुताबिक उत्तर कोरियाई लोग स्तेचिन में सब जगह हैं। वे यहां और दूसरी कंपनियों में भी काम करते हैं। उनकी हालत ऐसी ही है जैसी हमारी साम्यवाद के दौर में थी। आपको पता है कि उन्हें बात करने की इजाजत क्यों नहीं है? कहीं पश्चिम उन्हें लुभा न ले। गार्ड ने पत्रकारों की टीम को उत्तर कोरियाई मजदूरों के फोरमैन यानी मुखिया से भी मिलवाया। फोरमैन ने कहा हमारे लोग सिर्फ बगैर वेतन वाली छुट्टियां लेते हैं। जब कम समय में काफी काम करना होता है तो हम बिना रुके काम करते हैं।
 
हम पोलैंड के लोगों की तरह नहीं हैं, जो एक दिन में आठ घंटे काम करें और घर चले जाएं। पूर्व उप-राजदूत थे योंग-हो कहते हैं कि "इसमें कोई शक नहीं है कि विदेशों में काम करने वाले कामगारों की कमाई से उत्तर कोरिया में रह रहे उनके परिवारों का गुजारा चलता है, लेकिन क्या हमें इसके लिए प्रतिबंधों को हटा देना चाहिए? इसके अलावा हम किस तरह उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम और मिसाइलों को रोक सकते हैं? एक कंपनी जेएमए ने अपने बयान में कहा है कि उसने उत्तर कोरियाई लोगों को नौकरी पर नहीं रखा है और उसके मुताबिक सभी कर्मचारी कानूनी रूप से काम कर रहे हैं। सयुंक्त राष्ट्र संघ ने दिसंबर में उत्तर कोरिया पर नए प्रतिबंध लगाए थे। इसके बाद उत्तर कोरियाई नागरिकों के विदेशों में काम करने पर रोक लगा दी गई है, लेकिन ऐसे देश, जहां उत्तर कोरियाई लोग काम कर रहे हैं, उन्हें इस आदेश को मानने के लिए दो साल का समय दिया गया है।
 
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