28 Mar 2024, 19:23:26 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android
news » World

अंतरात्मा की आवाज पर मोदी ने आरसीईपी समझौते पर दस्तखत से किया इन्कार

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 5 2019 12:39AM | Updated Date: Nov 5 2019 12:39AM
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

बैंकॉक। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दक्षिण-पूर्वी एवं पूर्व एशिया के 16 देशों के बीच मुक्त व्यापार व्यवस्था के लिए प्रस्तावित क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) समझौते को भारत के करोड़ों लोगों के जीवन एवं आजीविका के प्रतिकूल बताते हुए उस पर हस्ताक्षर करने से आज साफ इन्कार कर दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहां तीसरी आरसीईपी शिखर बैठक में दो टूक शब्दों में भारत का फैसला सुना दिया। विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) विजय ठाकुर सिंह ने यहां संवाददाताओं को यह जानकारी दी। सिंह ने कहा कि भारत ने शिखर बैठक में इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करने के निर्णय की जानकारी दे दी है।
 
यह निर्णय मौजूदा वैश्विक परिस्थिति तथा समझौते की निष्पक्षता एवं संतुलन दोनों के आकलन के बाद लिया गया है। मोदी ने बैठक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि कोई भी कदम उठाते हुए यह सोचना चाहिए कि कतार में सबसे पीछे खड़े व्यक्ति को इससे क्या फायदा होगा। उन्होंने कहा कि इस बैठक में भारत द्वारा उठाये गये मुख्य मुद्दों का कोई समाधान नहीं निकल सका है। हमारा निर्णय देश के करोड़ों लोगों के जीवन एवं आजीविका से जुड़ा है। समझौते के प्रावधान उनके हितों के प्रतिकूल हैं। इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में भारत आरसीईपी में शामिल नहीं हो रहा है।
 
उन्होंने कहा कि भारत सदैव व्यापक क्षेत्रीय एकीकरण के साथ साथ अधिक मुक्त व्यापार नियमों का अनुपालन करने वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के पक्ष में रहा है। भारत आरसीईपी के विचार के आरंभ से ही रचनात्मक एवं सार्थक पहल के लिए सक्रियता से काम करता रहा है। उन्होंने कहा कि सात साल पहले आरंभ हुई आरसीईपी पर बातचीत पर निगाह डालें तो पाएंगे कि तब से अब के बीच वैश्विक आर्थिक एवं व्यापारिक परिस्थितियां आदि बहुत सारी चीजें बदल गयीं हैं। हम उनकी अनदेखी नहीं कर सकते। वर्तमान आरसीईपी समझौता इस करार की मूल भावना को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं करता है।
 
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं आरसीईपी समझौते को सभी भारतीयों के हितों के परिप्रेक्ष्य में देखता हूं जिसका मुझे कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिलता है। इसलिए ना तो गांधी जी की उक्ति और ना ही मेरी अंतरात्मा आरसीईपी में शामिल होने की इजाजत देती है।’’ उन्होंने कहा कि देश के किसानों, पेशेवरों एवं उद्योगपतियों की ऐसे निर्णयों में हिस्सेदारी होती है। कामगार एवं उपभोक्ता भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जो भारत को एक बड़ा बाजार और क्रयशक्ति के आधार पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाते हैं। उन्होंने आसियान के साथ भारत के आर्थिक एवं कारोबारी संबंधों को बढ़ावा देते रहने का भरोसा दिलाते हुए कहा कि आरसीईपी की कल्पना आने के हजारों वर्ष पहले से ही भारतीय व्यापारियों, उद्यमियों एवं आम जन ने इस क्षेत्र के साथ अटूट संबंध स्थापित किये थे।
 
सदियों के लिए ये संबंध एवं संपर्क हमारी साझी समृद्धि के लिये योगदान देते आये हैं। सिंह ने संवाददाताओं के सवालों के जवाब में कहा कि समझौते में शामिल नहीं होने के कारणों से समझौते के सभी पक्षकार अच्छी तरह से अवगत हैं। उनका कोई समाधान नहीं निकला। भारत को अपेक्षा थी कि बातचीत से एक निष्पक्ष एवं संतुलित निष्कर्ष निकलता लेकिन हमने पाया कि ऐसा नहीं हो सका। इसलिए हमने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रख कर यह निर्णय लिया है।
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »