घाना। तीन महीने पहले यूनिवर्सिटी ऑफ घाना से महात्मा गांधी की प्रतिमा छात्रों और शिक्षकों के विरोध के बाद हटा दी गई थी। छात्रों के विरोध का आधार था कि साउथ अफ्रीका में रहते हुए महात्मा गांधी के लिखे लेखों से लगता है कि वह रंगभेदी मानसिकता के समर्थक थे। हालांकि, भारतीय उच्चायोग का कहना है कि जल्द ही कैंपस में फिर से मूर्ति लगा दी जाएगी। मूर्ति इस वक्त कहां है, इसे लेकर कोई जानकारी नहीं है। गांधी के मूर्ति के विरोध के पीछे तर्क दिया गया था कि रंगभेद का समर्थन किसी भी आधार पर करने वालों का विरोध होना चाहिए। महात्मा गांधी के रंगभेदी होने या नहीं होने की बहस काफी पुरानी है।
2015 में साउथ अफ्रीका के 2 शिक्षाविदों अश्विन देसाई और गुलाम वहीद ने एक किताब लिखी थी, जिसके बाद गांधी के रंगभेदी होने की बहस फिर से शुरू हो गई। दोनों लेखकों ने महात्मा गांधी के साउथ अफ्रीका में रहने के दौरान उनके विचारों और लेखों का गंभीर अध्ययन किया। साउथ अफ्रीका में रहने के दौरान महात्मा गांधी भारतीय समुदाय के अधिकारों की बात किया करते थे। पुराने लेखों के आधार पर रंगभेदी होने का आरोप लगाया महात्मा गांधी के कुछ लेख में रंगभेद को लेकर प्रगतिशील विचार नहीं कहे जा सकते हैं। 1893 में उन्होंने कॉलोनियल नैटल पाल्यार्मेंट को लिखा, आम धारणा यह है कि भारतीय समुदाय औपनिवेशिक समुदायों में कुछ बेहतर है। कम से कम अफ्रीका के मूल निवासियों की तुलना में वह थोड़े बेहतर तो जरूर हैं। 1904 में जोहान्सबर्ग के हेल्थ ऑफिसर को लिखे पत्र में भी उन्होंने कुछ ऐसे ही विचार रखे थे। उन्होंने लिखा, कुली लोकेशन में बड़ी संख्या में भारतीयों के साथ अफ्रीकन रहते हैं। काफिरों के साथ भारतीयों को मिलाने की इस प्रक्रिया से मैं काफी विचलित हूं और यह मेरा ठोस मत है। गांधी के विचारों में हुआ क्रमिक विकास महात्मा गांधी के पोते और उनकी जीवनी लिखनेवाले राजमोहन गांधी ने कहा, 'साउथ अफ्रीका प्रवास के दौरान गांधी युवा थे और निश्चित तौर पर अपरिपक्व भी।
महत्वपूर्ण यह है कि उन्होंने अपने अतीत से बहुत कुछ सीखा।' राजमोहन गांधी भारत के राष्ट्रपिता के विचारों में विकास की बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि हालांकि, अपरिपक्व गांधी भी अपने समकालीन कई बड़ी हस्तियों से अधिक प्रगतिशील और तार्किक थे। प्रगतिशील थी गांधी की मुहिम- राजमोहन गांधी ने महात्मा गांधी की जीवनी में लिखा है कि गांधी ने रंग-जाति के भेदभाव को खत्म करने की जिस मुहिम की शुरुआत की थी वह प्रगतिशील है। उनके प्रगतिशील विचारों को ही आगे अमेरिका और साउथ अफ्रीका ने भी अपनी नीतियों में अपनाया। राजमोहन गांधी का कहना है, अपने शुरुआती युवा दिनों में गांधी भी ब्रिटिश शासन के समर्थक थे, लेकिन उनकी बाद की जिंदगी और कर्म पूरी दुनिया के लिए उदाहरण है। वह गांधी ही है जिन्होंने समानता पर बल देते हुए 1946 में लिखा था एक ऐसा समाज जहां न कोई पहले पायदान पर हो और न आखिरी।