प्रयागराज। दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुम्भ मेले में कड़ाके की ठंड पर श्रद्धालुओं की आस्था भारी पड़ रही है। गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में तड़के से ही दूर दराज से पहुंचे कल्पवासी और श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हुए, ऊं नम: शिवाय, हर-हर महादवे, हर-हर गंगे का उच्चारण करते हैं। हाड कंपाने वाली लगातार बढ़ती ठंड के बावजूद श्रद्धालुओं का कारवां सिर पर गठरी, कंधे पर कमरी और हाथ में लकड़ी पकड़े पग खरामा-खरामा संगम की ओर बढ़ते आ रहे हैं।
पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी और पछुआ हवा के कारण हाड़तोड़ ठंड भी बुजुर्ग श्रद्धालुओं की आस्था को ड़िगा नहीं पा रही है। एक तरफ पहाडों पर बर्फबारी दूसरी तरफ पछुआ का का असर “सोने में सुहागा” की कहावत को चरितार्थ कर रही है। श्रद्धालुओं का त्रिवेणी की आस्था, दुधिया रोश्नी में नहाए भोर के पहर घाट के किनारे सीना चीरती शीत लहरें भी श्रद्धालुओं का गंगा की तरफ बढने वाले कदमों को रोक नहीं सक रहे। उनकी प्रचण्ड आस्था के सामने मानो शीश झुका कर त्याग, तपस्या, दान और भजन करने वाले कल्पवासियों एवं स्नानार्थियों का अभिवादन कर रही हैं।
बुधवार की रात का पारा लुढ़क कर 5.5 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम 22.3 डिग्री सेल्सियस रहा। श्रद्धालुओं में श्रद्धा ऐसी की रेल गाड़ी और बसों में ठुंस कर त्रिवेणी में एक डुबकी की साध लिए पहुंच रहे हैं। मकर संक्रांति की पूर्व संध्या छह बजे तक करीब 65 लाख और मकर संक्रांति के पावन पर्व पर एक करोड़ 40 लाख श्रद्धालुओं ने देवाधिदेव की जटाओं से निकलने वाली गंगा में स्नान किया था। बुधवार की शाम तक करीब 70 लाख स्त्री, पुरूष, बूढे और बच्चों ने स्नान किया।
मध्य प्रदेश के सीधी से कुंभ में आए सेवानिवृत्त शिक्षक देवदत्त कर्मकार ने कुम्भ और गंगा की महत्ता के बारे में अपना विचार व्यक्त करते हुए बताया कि दिव्य आभा से सराबोर कुम्भ क्षेत्र रात्रि के पहर में इस कदर दमक रहा है मानो सहस्त्रों तारे धरती पर उतर आए हैं। कुम्भ भारत की सतरंगी छटा का ऐसा चटक रंग है जिसने उसे देखा वह भाग्यशाली जिसने नहीं देखा उससे सनातन सस्कृति का एक दमकता पक्ष छूट गया। फिर इंतजार होता है लम्बे समय का।
कर्माकर ने बताया कि कुम्भ मेले में एक तरफ जहां आध्यात्म की बयार बह रही है वहीं दूससरी तरफ आश्चर्य चकित विदेशी, जहां-तहां हो रही कथाएं, प्रवचन और देव समर्पण का हिलोरें मारता समंदर, इन सबका मिश्रण एक ऐसा अलौकिक आभा दृष्टांत करता है जिससे केवल निहाल हुआ जा सकता है।
कर्माकर की धार्मिक विचारों वाली पत्नी कांता बाई का कहना है गंगा निर्मल, अविरल, पाप नाशिनी और मोक्ष दायिनी है। उन्होंने बताया कि लाखों की संख्या में यहां पुरूष और महिला संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन के लिए कल्पवास कर रहे हैं वहीं उनके साथ आए दूसरे परिजन भी कल्पवास न/न करते हुए कल्पवास का पुण्य प्राप्त कर रहे हैं।
कांता बाई ने बताया कि तीर्थराज प्रयाग में सतत आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह होता रहता है। जिस स्थान पर ऋषियों और मुनियों ने बडे बडे यज्ञ किये हों वह स्थान धन्य है। गंगा के दर्शन से ही आत्मा सुखमय हो जाती है। कल-कल बहती गंगा की लहरें मानो कुछ कह रही हैं। उन्होंने बताया कि नहाने से पहले मां “गंगे’ को पुकारती हूं, और डूबकी मारती हूं। कोई ठंड नहीं। ठंड तो मन की एक सोच है।