नई दिल्ली। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने बुधवार को लोकसभा में कहा कि रेलवे के व्यय में सिर्फ वाणिज्यिक लागत ही नहीं ‘‘सामाजिक लागत’’ भी है और इस पर विचार करने का समय आ गया है कि हम कब तक ‘अच्छी सेवाओं को’ जारी रख सकते हैं। गोयल ने बुधवार को प्रश्नकाल के दौरान एक पूरक प्रश्न के उत्तर में यह बात कही। उन्होंने कहा, ‘‘समय आ गया है कि हम सामाजिक लागत पर बजट में अलग से विचार करें और हमारा परिचालन अनुपात (लागत और उससे प्राप्त राजस्व का अनुपात) शुद्ध रूप से वाणिज्यिक पहलुओं को दर्शाये। हमें यह भी विचार करना होगा कि हम कब तक अच्छी सेवायें जारी रख सकते हैं।’’
कांग्रेस के गौरव गोगोई द्वारा नियंत्रण एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुये रेलवे के गिरते परिचालन अनुपात के बारे में पूछे जाने पर गोयल ने कहा कि रेलवे सिर्फ वाणिज्यिक ही नहीं सामाजिक सेवायें भी देती है। दूरदराज के इलाकों, पर्वतीय इलाकों तथा अन्य दुर्गम इलाकों में परिचालन से कभी मुनाफा नहीं होता लेकिन इसका सामाजिक पहलू है।
इन सेवाओं की अपनी सामाजिक लागत है। उन्होंने कहा कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने से रेलवे पर सालाना 22,000 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ा है जो उसके कुल राजस्व के 10 प्रतिशत से ज्यादा है। इसलिए परिचालन अनुपात में गिरावट आयी है। इससे पहले छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने के बाद भी परिचालन अनुपात 15 प्रतिशत बढ़ गया था। उन्होंने कहा सार्वजनिक सुविधा सेवा होने के कारण सरकार यात्री किराये में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं कर रही है।
यात्री किराये में भारी सब्सिडी दी जा रही है और इस मद में आने वाली लागत के 43 प्रतिशत की वसूली किराये से नहीं हो पाती। कोलकाता, मुंबई और हैदराबाद में उपनगरीय सेवायें लोगों के परिवहन का मुख्य साधन हैं और इस पर आने वाली लागत का बड़ा हिस्सा वापस नहीं आता। ये सब सामाजिक लागत हैं। सार्वजनिक सुविधाओं के साथ सामाजिक उद्देश्य जुड़े होते हैं। हम पूर्वोत्तर पर, सैन्य क्षेत्रों पर और पर्वतीय इलाकों में भारी निवेश कर रहे हैं जहाँ से उस अनुपात में राजस्व वसूली कभी संभव नहीं होगा।