नैनीताल। उत्तराखंड में बिजली कर्मचारियों को कम दाम पर असीमित बिजली उपलब्ध कराने के मामले में उच्च न्यायालय ने सोमवार को उत्तराखंड विद्युत निगम को एक महीने के अंदर प्रगति रिपोर्ट अदालत में पेश करने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ में सोमवार को देहरादून के आरटीआई क्लब की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक आज अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश हुए। यूपीसीएल की की ओर से अदालत में जवाब पेश किया गया। निगम की ओर से कहा गया कि कर्मचारियों और अधिकारियों के लिये बिजली की नयी दरें तय की जा रही हैं और सभी के आवासों में मीटर लगाये जा रहे हैं।
निगम ने इसके लिये अदालत से तीन महीने की समय सीमा की मांग की। एमडी की ओर से अदालत को बताया गया कि इस अवधि में बिजली के नये मीटर लगा दिये जायेंगे। उन्होंने कहा जो कर्मचारी मीटर लगाने में आनाकानी करेंगे उनका वेतन रोक दिया जाएगा। यह जानकारी याचिकाकर्ता के अधिवक्ता बीपी नौटियाल की ओर से दी गयी। उन्होंने कहा कि अदालत यूपीसीएल के एमडी के जवाब से संतुष्ट नजर नहीं आयी। अदालत ने यूपीसीएल को एक माह की समय सीमा दी और एक महीने के अंदर प्रगति रिपोर्ट अदालत में पेश करने के निर्देश दिये। दूसरी ओर याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि यूपीसीएल की ओर से प्रावधानों के विपरीत मुफ्त बिजली उपलब्ध करायी जा रही है।
यूपीसीएल ने उत्तर प्रदेश से जो अधिनियम किया उसमें उत्तर प्रदेश की ओर से अनुच्छेद 23 को संशोधित कर दिया गया था। नये संशोधन के अनुसार कर्मचारियों एवं अधिकारियों को मामूली दर पर बिजली उपलब्ध कराने के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है। इससे पहले अदालत की ओर से पिछली सुनवाई को यूपीसीएल के एमडी को 02 दिसंबर को अदालत में पेश होने का फरमान दिया था। साथ ही यूपीसीएल, उत्तराखंड जल विद्युत निगम एवं पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड से सेवानिवृत्त एवं कार्यरत कर्मचारियों द्वारा खर्च की गयी बिजली के संबंध में रिकार्ड पेश करने के निर्देश दिये गये थे।