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मुक्त व्यापार समझौता किसानों के लिए विनाशकारी साबित होगा : शिवकुमार

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 23 2019 5:37PM | Updated Date: Sep 23 2019 5:37PM
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श्रीगंगानगर। राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवकुमार ने कहा है कि केंद्र सरकार जिस रीजनल कप्रिहेंसिव इकनोमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने जा रही है वह देश के किसानों के लिये विनाशकारी साबित होगा। शिव कुमार ने आज यहां जारी बयान में कहा कि यह समझौता भारत, चीन, आॅस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जापान, न्यूज़ीलैंड और आसियान देशों के बीच हो रहा है। इस समझौते पर नवम्बर के शुरू में थाईलैंड में होने वाली बैठक में हस्ताक्षर किये जायेंगे।
 
यह समझौता हो गया तो किसान तबाह हो जायेंगे। उन्होंने कहा कि भारत ने अब तक 14 मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें भारत श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता, भारत आसियान मुक्त व्यापार समझौता प्रमुख हैं। मुक्त व्यापार समझौतों के तहत विदेशों से आने वाले कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क कम किया जाता है, आयात शुल्क कम होने से विदेशी उत्पाद सस्ते हो जाते हैं जिस से हमारे किसानों के उत्पाद नहीं बिक पाते हैं। इसके दुष्परिणाम हमारे किसानों को झेलने पड़ते हैं।
 
विदेशों से आयात होने पर हमारे यहां के कृषि उत्पादों के दाम गिर जाते हैं और किसानों को उनकी फसलों के सही दाम नहीं मिल पाते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि वर्ष 1999 में किसानों को एक किलो मिर्च उत्पादन करने पर 720 रुपये मिलते थे। भारत श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते के बाद मिर्च की फसल करने वाले किसानों को एक किलो मिर्च के मात्र 330 रुपये मिल रहे हैं।
 
इसी प्रकार वर्ष 2008 में दूध पाउडर के आयात पर लगी पाबंदियों को हटाने के बाद भारत में 20 हजार टन दूध पाउडर एवं 15 हजार टन बटर आयल का आयात किया गया। इस से 75 हजार टन दूध बनाया गया। महाराष्ट्र में किसानों को एक लीटर दूध के मात्र 17 रुपये मिल रहे हैं एवं पंजाब में किसानों को एक लीटर दूध के 20 रुपये मिल रहे हैं। किसानों को दूध के उचित दाम न मिलने का सबसे बड़ा कारण है विदेशों से आयात किया जाने वाला दूध पाउडर।
 
शिवकुमार ने कहा कि आरसीईपी पर हस्ताक्षर होने के बाद और भी अधिक दूध पाउडर विदेशों से आयात किया जाएगा। भारत के किसानों को उसके दुष्परिणाम झेलने पड़ेंगे। विदेशों से चीनी का आयात किये जाने से गन्ने के किसानों को उनकी फसल के सही दाम नहीं मिल रहे हैं। किसानों की करीब 20 हजार करोड़ की राशि अभी बकाया है।
 
आरसीईपी के सदस्य देशों में चीन, जापान, सिंगापुर, न्यूज़ीलैंड चीनी का निर्यात करने वाले देश हैं, आरसीईपी पर हस्ताक्षर होने के बाद इन देशों से चीनी का आयात किया जाएगा और हमारे यहां गन्ने के दाम और भी गिर जाएंगे, जिसके विनाशकारी परिणाम गन्ना किसानों को झेलने पड़ेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि आरसीईपी से फायदा अडानी जैसे कॉर्पोरेट घरानों को होगा, जो खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक है। आयात शुल्क कम होने से अडानी को खाद्य तेल सस्ते दामों पर मिलेंगे और उसका मुनाफा बढ़ जाएगा। अडानी का मुनाफा बढ़ाने के लिए सरकार देश के किसानों को बर्बाद करने पर तुली है।
 
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के समय किसान संगठनों एवं ट्रेड यूनियनों ने आरसीईपी का विरोध किया था और उस समय सरकार ने स्थाई समिति गठित करके मुक्त व्यापार समझौतों की बातचीत पर रोक लगा दी थी। उस समय बीजेपी ने विपक्ष में रहते हुए मुक्त व्यापार समझौतों का पुरजोर विरोध किया था, लेकिन सत्ता में आते ही बीजेपी के सुर बदल गए और आरसीईपी जैसे मुक्त व्यापार समझौते का समर्थन करना शुरू कर दिया।
 
शिवकुमान ने कहा कि आरसीईपी समझौते के तहत विदेशों से आयातित कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क कम किये जा रहे हैं।  सरकारी बुद्धिजीवियों का तर्क है कि इन मुक्त व्यापार समझौतों से हमारे किसानों को भी अपने उत्पाद बेचने के लिए विदेशी बाजार मिलेगा, लेकिन बुद्धिजीवियों का यह तर्क धरातल पर कहीं नहीं टिकता। वर्ष 2013-14 में हम 43.23 अरब डॉलर के कृषि उत्पादों का निर्यात करते थे, 2016-17 में निर्यात घटकर 33.87 अरब रह गया है।
 
वर्ष 2013-14 में हम 15.03 अरब डॉलर के कृषि उत्पादों का आयात करते थे, अब कृषि आयात बढ़कर 25.09 अरब डॉलर हो गया है। उन्होंने कहा कि-'हम अपने किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं कर सकते, भारत में भूमि जनसंख्या अनुपात अन्य देशों के मुकाबले भिन्न हैं और विदेशों में किसानों को वहां की सरकारों द्वारा अरबों डॉलर का अनुदान दिया जाता है जो भारत के किसानों को मिलने वाले अनुदान के मुकाबले बहुत अधिक है।
 
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