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हाथियों के साथ संघर्ष में हर साल जाती है 500 लोगों की जान

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Feb 20 2020 12:09PM | Updated Date: Feb 20 2020 12:09PM
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गांधीनगर। हाथियों के विचरण क्षेत्र में इंसानी आबादी बस जाने से देश में हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष बढता जा रहा है तथा हर साल 500 लोगों को इसमें अपनी जान गंवानी पडती है। ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन आफ नेचर’ (आईयूसीएन) में एशियाई हाथियों के विशेषज्ञ संदीप कुमार तिवारी ने बताया कि हाथी एक ऐसा जानवर है जिसे एक जगह रुक कर रहना पसंद नहीं हैं। वह एक जगह से दूसरी जगह भ्रमण करता रहता है। बढती इंसानी आबादी के साथ हाथियों का विचरण क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है।
 
पिछले 10 साल में हाथियों के विचरण के लिए बने सात गलियारे भी समाप्त हो गये हैं। विचरण क्षेत्र का क्षेत्रफल सिकुड़ने के साथ ही उनके बीच में इंसानों के बस जाने से विचरण क्षेत्र बंट भी गये हैं। इससे इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष बढा है। जो विचरण क्षेत्र बचे हैं वे भी सिकुड़ते जा रहे हैं क्योंकि इंसानी आबादी बढने के साथ ही रहने, खेती और ढांचागत निर्माण के लिए जगह चाहिये होती है। तिवारी ने बताया कि देश में हर साल 500 लोगों को इस संघर्ष के कारण जान गंवानी पड़ती है।
 
साथ ही हर साल 100 हाथी मानवजनित कारणों से मर जाते हैं। इंसानों और हा?थी के बीच संघर्ष की घटनायें उन इलाकों में ज्यादा पायी गयी हैं जहां हम उन्हें विचरण से रोकने की कोशिश करते हैं या उनके मार्ग में किसी प्रकार की बाधा आती है। यही कारण है कि ओडिशा, छत्तीसगढ, झारखंड और दक्षिणी पश्चिम बंगाल में ये घटनायें अधिक होती हैं।
 
इन इलाकों में खनन गतिविधियों के कारण हाथियों का विचरण क्षेत्र प्रभावित हुआ है। देश में हाथियों की कुल संख्या का मात्र 10 फीसदी इन इलाकों में है, लेकिन इंसान और हाथी के बीच संघर्ष की 40 फीसदी घटनायें इन्हीं इलाकों में होती हैं। उन्होंने बताया कि हाथियों को विचरण का रास्ता देना एक मात्र समाधान है। पर्यावरण मंत्रालय में वन महानिरीक्षक तथा ‘प्रोजेक्ट एलिफेंट’ ने बताया कि भारत के पूर्वी तथा पूर्वोत्तर राज्यों से हाथी सीमा पार कर नेपाल, बंगलादेश, भूटान और म्यांमार तक चले जाते हैं।
 
इन देशों के साथ 40 ऐसे मार्ग हैं जहां से हाथी गुजरते हैं। इसलिए सीमा के आरपार हाथियों की निर्बाध आवाजाही के लिए इन देशों के साथ बातचीत चल रही है। बंगलादेश के साथ जल्द ही इस संबंध में समझौता होने की उम्मीद है। भूटान के साथ भी बात चल रही है। दुनिया के 13 देशों में इस समय करीब 50 हजार एशियाई हाथी हैं। इनमें लगभग 30 हजार भारत में हैं। वर्ष 2017 की गणना में उनकी संख्या 29,964 पाई गयी थी। तिवारी ने बताया कि इसका एक समाधान यह है कि लोगों को हाथियों के प्रति संवेदनशील बनाया जाये।
 
देश में कई जगह, जहां आम तौर पर हाथी आबादी में आते रहते हैं, स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया टीम बनायी गयी है। बीबीसी, डिस्कवरी और नेशनल जियोग्राफिक के लिए वन्य जीवों पर कई वृत्त चित्र बनाने वाले जाने-माने जीवशास्त्री एवं संरक्षणवादी इयान रेडमंड ने बताया कि हाथी जंगल के विकास और संरक्षण के लिए काफी महत्वपूर्ण जीव है। एक जगह से भोजन लेता है और जिस रास्ते से जाता है उसे उर्वर बनाता हुआ जाता है। हाथी का मल काफ अच्छा प्राकृतिक उर्वरक है। वापस आते समय वह इसी प्रक्रिया को दुहराता है और वापसी के रास्ते को उर्वर बनाता हुआ जाता है। 
 
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