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80 लोगों को जीवनदान दिला चुके हैं डॉ ओबरॉय

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 25 2019 7:44PM | Updated Date: May 25 2019 7:44PM
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जालंधर। परोपकार के अंतरराष्ट्रीय प्रतीक और सरबत्त दा भला चैरीटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ एसपी सिंह ओबरॉय अब तक मौत की सजा पाये, देश और विदेशों के लगभग 80 लोगों को जीवनदान दिला चुके हैं। दुबई और शारजाह में ‘सेवियर सिंह’ के नाम से मशहूर डॉ सुरिंदर पाल सिंह ओबेरॉय अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर परोपकार और निस्वार्थ सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में एक हस्ताक्षर है। वह अपने सामाजिक, सांस्कृतिक शैक्षिक और आर्थिक उत्थान के माध्यम से समाज के कमजोर, अभावग्रस्त वर्गों की सेवा के लिए समर्पित है। वह दुनिया में एक और केवल एक ‘सेवियर सिंह’ सिंह बन गए हैं, जो यूएई में आपराधिक मामलों में शामिल मौत की सजा से लगभग 89 युवाओं को रिहा कराने में सफल हुए हैं और उनके मामलों को सुलझाने के लिए कानूनी सहायता प्रदान की है। इनमें भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, फिलीपीन,  इथियोपिया और बंगलादेश से संबंधित लोग शामिल हैं।

डॉ ओबरॉय ने आज गरीब मरीजों की मुफ्त सहायता के लिए दो एंबुलेंस दान करते हुए बताया कि उनके परिवर्तन के पीछे की कहानी बहुत सनसनीखेज है, जब उन्होंने मौत की सजा पाये युवकों की माताओं की रोने की आवाज सुनी, जिन्हें शारजाह में समूह लड़ाई के एक मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी। उन्होंने 17 लड़कों के जीवन को बचाने के लिए ‘ब्लड मनी’ के रूप में अपनी व्यक्तिगत बचत से लगभग 2.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया। यद्यपि यह सब उन्होंने अपने व्यवसाय की कीमत पर किया गया था। डॉ ओबरॉय ने न केवल निराश माताओं की गोद में उनके बच्चों को उपहार में दिया, उन्होंने शिक्षा के लिए उनके बच्चों को गोद लिया और उन्हें प्रति परिवार दस हजार रुपये प्रति माह नियमित रूप से वित्तीय सहायता देना भी शुरू कर दिया। उन्होंने खाड़ी देशों में प्रचलित कानूनों के बारे में जानने के लिए हर नए प्रवेशकर्ता की मदद करना शुरू कर दिया। उन्होंने दुबई और शारजाह में रोजमर्रा की जरुरत मंद चीजों की दुकान की स्थापना भी की, जहां लोग भिन्न राष्ट्रीयता के बावजूद, 15 दिनों के लिए मुफ्त राशन प्राप्त करते हैं।सेवियर सिंह ने बताया कि इस तरह उन्होंने लोगों की सेवा के क्षेत्र में छलांग लगाई और पूरे भारत और विदेशों में सरबत दा भाला धर्मार्थ ट्रस्ट की शाखाएं खोलीं, और कभी पीछे नहीं मुड़ कर नहीं देखा। उनका मानना ? है कि केवल अच्छा काम करना है और समाज को उतनी ही ताकत देनी चाहिए जितनी वह दे सकते हैं। वह उच्च शिक्षा के लिए जरूरतमंद लेकिन मेधावी बच्चों को प्रायोजित करने के लिए जुनून के साथ सेवा दे रहे हैं।

बूढ़ी महिलाओं, विधवाओं को पेंशन और अन्य गैर सरकारी संगठनों को मासिक समर्थन, शैक्षणिक संस्थानों और जेलों को ढांचागत सहायता, और आधुनिक फाको तकनीकों के साथ मुफ्त मोतियाबिंद सर्जरी प्रदान कर रहे हैं। डॉ ओबरॉय ने अब तक लगभग आठ लाख स्कूली छात्रों को शुद्ध पानी की आपूर्ति के लिए वाणिज्यिक आरओ लगवाए हैं, पुरानी बीमारी के रोगियों को नियमित मासिक मदद के अलावा मामूली दरों पर डायलिसिस सुविधाएं और वित्तीय सहायता दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह अब तक गुरूद्वारों और मंदिरों में 50 प्रयोगशालाएं स्थापित कर चुके हैं जहां मामूली रकम अदा कर मरीज अपनी जांच करवा सकते हैं। इनमें से छह प्रयोगशालाएं हिमाचल प्रदेश, छह हरियाणा और छह राजस्थान तथा बाकी पंजाब में स्थापित की गई हैं। गरीब मरीजों के लिए सरबत्त दा भला ट्रस्ट द्वारा जालंधर में दस डिस्पेंसरियां स्थापित की गई हैं। उन्होंने बताया कि लगभग 225 मुफ्त चिकित्सा जांच शिविरों में लगभग 81 हजार आंखों के मरीजों की जांच कर उनमें से 20 हजार से ज्यादा मरीजों के मोतियाबिंद के आप्रेशन किए गए हैं। आनंदकार्ज, विवाह और निकाह योजना के तहत ट्रस्ट द्वारा अब तक 22 हजार से ज्यादा जोड़ों के विवाह करवाए हैं। 

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