पितरों के श्राद्ध और तर्पण के लिए बिहार के गया धाम से श्रेष्ठ कोई दूसरा स्थान नहीं है। गया में श्राद्ध कर्म करने किसी भी व्यक्ति जहां पितृ, माता और गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता है वहीं, दूसरी ओर पितरों को मुक्ति मिल जाती है और पितर स्वर्ग लोक को चले जाते हैं।
मोक्षनगरी गया में चल रहे विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले की रौनक इन दिनों चरम पर है।
पितरों की मुक्ति की कामना लिए देश-विदेश से गया आने वाले पिंडदानियों का तांता लगा हुआ है। पिंडदानियों को किसी प्रकार का कष्ट नहीं हो इसके लिए राज्य सरकार, जिला प्रशासन के साथ-साथ स्थानीय लोग जी-जान से जुटे हैं। विश्व में मुक्तिधाम के रूप में विख्यात गयाजी को श्राद्ध और तर्पण करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
लोकमान्यता है कि गयाधाम में स्वयं भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप में निवास करते हैं। गया में श्राद्ध कर्म पूर्ण करने के बाद भगवान विष्णु के दर्शन करने से मनुष्य पितृ, माता और गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता है। अतिप्राचीन विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के पदचिह्न आज भी साफ तौर देखे जा सकते हैं, जो उनकी मौजूदगी का सुखद अहसास देते हैं। पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के लिए गया से श्रेष्ठ कोई दूसरी जगह नहीं है।
गया तीर्थ में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किए जाने का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार, गयासुर नाम के एक असुर ने घोर तपस्या करके भगवान से आशीर्वाद प्राप्त कर लिया। भगवान से मिले आशीर्वाद का दुरुपयोग करके गयासुर ने देवताओं को ही परेशान करना शुरू कर दिया। उसके अत्याचार से दु:खी देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली और उनसे प्रार्थना की कि वह असुर से देवताओं की रक्षा करें। इस पर विष्णु ने अपनी गदा से गयासुर का वध कर दिया। बाद में भगवान विष्णु ने गयासुर के सिर पर एक पत्थर रख कर उसे मोक्ष प्रदान किया।