हिन्दू कैलेंडर के नए मास कार्तिक का प्रारंभ 14 अक्टूबर दिन सोमवार से हो रहा है। पुराणादि शास्त्रों में कार्तिक मास का विशेष महत्व बताया गया है। अर्थात् कार्तिक मास में जितेन्द्रिय रहकर नित्य स्नान करें और जौ, गेहूँ, मूँग, तथा दूध-दही और घी आदि का एक बार भोजन करें तो सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत को आश्विन की पूर्णिमा से प्रारंभ करके 31वें दिन कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को समाप्त करें। इसमें स्नान के लिए घर के बर्तनों की अपेक्षा कुआँ, बावली या तालाब आदि अच्छे होते हैं और कूपादि की अपेक्षा कुरुक्षेत्रादि तीर्थ, अयोध्या आदि पुरियाँ और काशी की नदियां एक- से -एक अधिक उत्तम हैं। ध्यान रहे कि स्नान के समय जलाशय मे प्रवेश करने के पहले हाथ, पाँव और मैल अलग धों ले।आचमन करके चोटी बांध लें और जल -कुश से संकल्प करके स्नान करें।
अर्थात् कार्तिक मास में जितेन्द्रिय रहकर नित्य स्नान करें और जौ, गेहूँ, मूँग, तथा दूध-दही और घी आदि का एक बार भोजन करें तो सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत को आश्विन की पूर्णिमा से प्रारंभ करके 31वें दिन कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को समाप्त करें। इसमें स्नान के लिए घर के बर्तनों की अपेक्षा कुआँ, बावली या तालाब आदि अच्छे होते हैं और कूपादि की अपेक्षा कुरुक्षेत्रादि तीर्थ, अयोध्या आदि पुरियाँ और काशी की नदियां एक- से -एक अधिक उत्तम हैं। ध्यान रहे कि स्नान के समय जलाशय मे प्रवेश करने के पहले हाथ, पाँव और मैल अलग धों ले।आचमन करके चोटी बांध लें और जल -कुश से संकल्प करके स्नान करें।
कार्तिक के दौरान शाम के समय भगवान विष्णु के समक्ष दीप-दान करना चाहिए।
सुबह के समय स्नान करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है।
भगवान रूद्र को नमस्कार करते हुए आकाशदीप जलाएं।
तुलसी के पास दीपक जलाकर या अपने घर के मंदिर में बैठकर प्रभु नाम की महिमा का गुणगान करें।