करीब 125 साल बाद यह दुर्लभ संयोग बना है, जब सोमवारी और नागपंचमी एक ही दिन है। इस दिन भगवान शिव और नाग देवता की पूजा करने से श्रद्धालु के सारे दोष खत्म हो जाते हैं और पूजा के बाद उनके जिंदगी की हर मनोकामना भगवान पूरी करते हैं। बता दें कि सोमवारी पर एक ओर से श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ को जल के साथ बेलपत्र, धतूरा चढ़ाएंगे, वहीं नाग देवता को दूध और धान का लावा चढ़ाया जाएगा। शिवालयों में भगवान शिव की पूजा होगी तो मनसा देवी मंदिरों और घरों में नाग देवता पूजे जाएंगे। नागपंचमी को लेकर मनसा विषहरी मंदिरों में प्रतिमाओं को निर्माण जोर-शोर से चल रहा है।
बिहार के विभिन्न जिलों में नागपंचमी पर विषहरी मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना के साथ मेले का भी आयोजन होता है। दक्षिण भारत में हिमालय शृंखला के शिवालिक पर्वत पर मनसा देवी का बड़ा सा मदंर है। गौरतलब है कि इससे पहले 22 जुलाई यानी पहली सोमवारी को ही बंगाल, ओडिसा, राजस्थान समेत कुछ राज्यों में नागपंचमी की पूजा की जा चुकी है। मान्यता है कि किसी परिवार में अगर कोई सांप के काटे जाने से मरा है तो उस परिवार के लोगों को भगवान शिव के साथ नाग देवता की पूजा करनी चाहिए। भविष्य पुराण के अनुसार जिन लोगों की मौत सांप के काटने से होती है, वह मृत्यु के बाद सर्प योनी में जन्म लेते हैं। ऐसे में नाग देवता की पूजा करने से उनके पूर्वज सर्प योनी से मुक्त हो जाते हैं।
जानें मनसा देवी को। बता दें कि मनसा देवी भगवान शिव की अंश हैं। उन्हें नाग समुदाय की माता और वासुकि की बहन भी माना जाता है। लोग अपने घर के बाहर दोनों ओर गोबर से सांप की आकृति बनाकर दही, अक्षत, पुश्प, मोदक, दूर्वा आदि से उनकी पूजा करते हैं। पूजा के बाद आरती होती है और नाग पंचमी की कथा सुनी जाती है। ब्रह्मण को भोजन भी कराना चाहिए। श्रद्धालु नाग पंचमी पर इनकी पूजा करके मनचाहा फल मांगते हैं। खास बात है कि भारत के अलावा नेपाल में भी यह त्योहार मनाया जाता है।
पूजा की शुभ मुहूर्त जानें। सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि चार अगस्त की शाम 6:50 बजे से शुरू होगी और पांच अगस्त की दोपहर 3:55 तक रहेगी। खास बात है कि इस दिन सूर्य, मंगल, बुध और शुक्र एक साथ कर्क राशि में चतुष्ग्रही होकर मौजूद रहेंगे। पांच अगस्त की सुबह 6:54 बजे तक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और शाम 5:24 बजे हस्त नक्षत्र के बाद चित्रा नक्षत्र लगेगा।