हिंदू धर्म में प्रत्येक वर्ष गणगौर पर्व बेहद उल्लास एवं धूमधाम से मनाया जाता है। गणगौर रंग बिरंग संस्कृति का अनूठा उत्सव एवं मारवाड़ियों का प्रमुख त्योहार है। यह आमतौर पर राजस्थान और मध्यप्रदेश का लोकपर्व है। गणगौर पर्व चैत्र शुक्ल की तृतीया को मनाया जाता है और इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर नाच गाकर शिव पार्वती की पूजा करती हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गणगौर पर्व को राजस्थान में मारवाड़ी समाज के लोग 16 दिनों तक एवं मध्यप्रदेश में निमाड़ी समाज के लोग तीन दिनों तक मनाते हैं।
गणगौर का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष गणगौर का पर्व 8 अप्रैल दिन सोमवार को मनाया जाएगा। पंडितों के अनुसार सात अप्रैल शाम 4.01 मिनट से 8 अप्रैल को शाम 4.15 मिनट तक गणगौर पूजा का शुभ मुहूर्त है।
गणगौर पूजन का महत्व
वास्तव में गणगौर महिलाओं का ही पर्व है। इस दिन कुंवारी कन्याएं एवं सुहागिन महिलाएं दोपहर तक उपवास रखती हैं और पूरे विधि विधान से शिव और पार्वती की पूजा करती हैं। कुंवारी कन्याएं अच्छे वर के लिए जबकि सुहागिनें पति की लंबी उम्र के लिए यह पूजा करती हैं। सोलह दिन तक चलने वाले गणगौर पूजन को महिलाएं सोलह श्रृंगार करके पूरी श्रद्धा से करती हैं।
गणगौर पूजा की विधि
चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को तड़के सुबह स्नान करके गीले कपड़ों में घर के किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में ज्वार बोना चाहिए। ज्वार को पार्वती और शिव का प्रतीक माना जाता है।
इसके बाद शिव एवं पार्वती की प्रतिमा को स्नान कराकर सुंदर वस्त्रों से सजाकर एक पालने में बैठाएं और माता पार्वती को चूड़ी, सिंदूर, मेहंदी, महावर, बिंदी, कंघी सहित सुहाग की सभी वस्तुएं चढ़ाएं और उनका श्रृंगार भी करें।
अब चंदन, अक्षत, धूप दीप एवं अन्य पूजा सामग्री से विधि विधान से शिव गौरी की पूजा करें।
इसके बाद माता पार्वती को भोग लगाएं और गौरी जी की कथा सुनें।
कथा सुनने के बाद मां पार्वती को चढ़ाए गए सिंदूर से अपनी मांग भरें एवं कुंवारी कन्याएं माता को प्रणाम करके आशीर्वाद ग्रहण करें।
पूजा खत्म होने के बाद शोभयात्रा निकालें और शिव पार्वती को पवित्र नदी या सरोवर में ले जाकर विसर्जित करें और शाम को उपवास खोलें।