नई दिल्ली। किसानों की मुश्किल बढ़ सकती है। उन्हें खाद (फर्टिलाइजर) के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है। उर्वरक के मुख्य घटकों मसलन फॉस्फेट और पोटाश की वैश्विक कीमतों में वृद्धि के चलते चालू खरीफ सीजन के दौरान इनके दाम 5 से 26 फीसदी तक बढ़ सकते हैं। एनॉलिस्ट्स और फर्टिलाइजर उद्योग से जुड़े अधिकारियों ने यह अनुमान जताया है। हालांकि, उन्होंने कहा कि यदि सरकार उर्वरक कंपनियों के लिए प्रति इकाई सब्सिडी बढ़ाती है तो किसानों पर ऊंची कीमतों का प्रभाव कम होगा। यूरिया की कीमतें आमतौर पर सरकारी नियंत्रणों के कारण स्थिर रहती हैं।
इस साल खरीफ सीजन में किसानों द्वारा भुगतान किए जाने वाले 1400 रुपए प्रति बैग (50 किलोग्राम) की तुलना में डी.अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की कीमत 8 फीसदी ज्यादा है। विश्लेषकों ने कहा कि अक्टूबर अंत तक यह 4 फीसदी तक बढ़ सकता है, जबकि पोटाश (एमओपी) के मूरिएट की कीमत 26 फीसदी बढ़कर 880 रुपए प्रति बैग (50 किलोग्राम) हो सकती है।
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (एनपीके के) के दाम 5-10 फीसदी बढ़कर 960-1180 रुपए प्रति बैग (50 किलो) तक पहुंच सकते हैं। भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (इफको) के संयुक्त प्रबंध निदेशक राकेश कपूर ने कहा रुपए की कीमतों में गिरावट से कच्चे माल की लागत बढ़ गई है। कंपनियों को यह देखना होगा कि वे वृद्धि के असर को किस तरह बर्दाश्त करती हैं।
देश में हर साल होती है करीब 310 लाख टन फर्टिलाइजर की खपत
आने वाले रबी मौसम के लिए खाद कंपनियों के पास उर्वरक का पर्याप्त स्टॉक था। पोटाश की कीमतों में सिर्फ 50 डॉलर (करीब 3600 रुपए) प्रति टन की वृद्धि हुई है। यहां तक कि फॉस्फेट की कीमतों में भी 103 डॉलर (7250 रुप) प्रति टन की वृद्धि हुई है। कृषि मंत्रालय के अनुसार उर्वरक उद्योग के पास रबी मौसम के लिए पर्याप्त खाद है।
रबी मौसम में यूरिया की जरूरत 162.74 लाख टन, डीएपी की 50.46 लाख टन, एमओपी (17.28 लाख टन), एनपीके (52.1 9 लाख टन) और एसएसपी के लिए 29.80 लाख टन रहने का अनुमान है। भारत हर साल अपनी कुल जरूरत का करीब एक-चौथाई हिस्सा आयात करता है। देश में हर साल करीब 310 लाख टन फर्टिलाइजर की खपत होती है। भारत हर साल करीब 30 लाख टन एमओपी का आयात करता है, क्योंकि पोटाश उत्पादन का भारत के पास कोई विकल्प नहीं है।