नई दिल्ली। भारत की तेल कंपनियां सितंबर और अक्टूबर महीने में ईरान से मासिक तेल आयात में साल के शुरूआती महीनों के मुकाबले करीब-करीब आधी कटौती करेंगी। इसकी वजह यह है कि ईरान पर नवंबर से लगने जा रहे अमेरिकी प्रतिबंध के बाद ट्रंप प्रशासन के आॅफर का फायदा उठाया जा सके।
सितंबर और अक्टूबर में ईरान से तेल आयात 2 करोड़ 40 लाख बैरल घट जाएगा क्योंकि मौजूदा स्थिति को पहले ही भांपकर अप्रैल से अगस्त के बीच ज्यादा तेल खरीद लिया गया था। गौरतलब है कि दुनिया के ताकतवर देशों के साथ 2015 में की गई न्यूक्लियर डील से ईरान के हटने के बाद अमेरिका ईरान पर पाबंदी फिर से बहाल कर रहा है। वॉशिंगटन 6 अगस्त से कुछ वित्तीय प्रतिबंध लागू कर चुका है जबकि ईरान के पेट्रोलियम सेक्टर को प्रभावित करने वाली पाबंदियां 4 नवंबर से लागू होंगी।
चीन के बाद भारत ईरान के कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है। भारत अमेरिकी प्रतिबंधों की बहाली को ज्यादा तवज्जो नहीं देना चाहता, लेकिन वॉशिंगटन की ओर से मिले पाबंदियों से छूट के आॅफर को अपनाने की कोशिश करते हुए अमेरिका के साथ संतुलन साधना चाहता है ताकि यह अमेरिकी वित्तीय तंत्र के साथ अपने हितों को संरक्षित कर सके।
जून महीने में पेट्रोलियम मंत्रालय ने रिफाइनरियों से कहा था कि वे नवंबर महीने से ईरान से तेल आयात में बड़ी कटौती करने की तैयारी करे और संभव हो तो बिल्कुल आयात नहीं करने को भी तैयार रहे। गौरतलब है कि ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि वह भारत जैसे कुछ देशों को ईरान से तेल आयात पर पाबंदी में ढील दे सकता है, लेकिन उन्हें अभी ईरान से तेल आयात रोकना पड़ेगा। पिछले सप्ताह नई दिल्ली में उच्चस्तरीय अधिकारियों से बातचीत में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने यह बात कही थी।
तेल के दाम बढ़ने से विपक्षियों के निशाने पर भारत सरकार
दरअसल, भारत सरकार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए की कमजोरी और पेट्रोल-डीजल के दाम रेकॉर्ड स्तर के छूने से विपक्षियों के निशाने पर है। ऐसे में मोदी सरकार ईरान से तेल आयात रोकना नहीं चाहती है क्योंकि वहां से भारत को डिस्काउंट पर कच्चा तेल मिल रहा है। सरकारी सूत्रों ने बताया कि भारत ने पिछले सप्ताह अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत में स्पष्ट कर दिया था कि वह वॉशिंगटन की ओर से पाबंदियों पर छूट के आॅफर पर काम कर रहा है।
एक अधिकारी ने कहा अमेरिका और ईरान, दोनों के साथ हमारे विशेष रिश्ते हैं और हम इन सबके बीच संतुलन साधने की कोशिश में हैं। साथ ही हमारा ध्यान इस बात पर भी है कि रिफाइनरियों और उपभोक्ताओं के हितों को भी कैसे संरक्षित कर सकें, लेकिन, अगर वॉशिंगटन ने कड़ा रुख अपनाया तो भारत के पास ईरान से तेल आयात रोकने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा।