नई दिल्ली। सोयाबीन उत्पादक राज्यों में अच्छी बारिश का असर कीमतों पर दिखाई दे रहा है। चालू महीने में सोयाबीन की कीमतों में सात फीसदी से ज्यादा गिरावट हो चुकी है, जबकि पिछले डेढ़ महीने में दाम करीब 11 फीसदी टूट चुके हैं। घरेलू उत्पादन बढ़ने के साथ वैश्विक उत्पादन बढ़ने के असर से कीमतों में तेज गिरावट दर्ज की जा रही है। सोयाबीन की कीमतों में गिरावट का असर दूसरी तिलहन फसलों पर भी पड़ रहा है। निर्यात मांग बढ़ाने के लिए कारोबारियों की नजर चीन, जापान और यूरोपीय देशों पर है।
घरेलू बाजार में सोयाबीन की कीमतें गिरकर करीब सात महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई है। वायदा बाजार में सोयाबीन के दाम लगातार टूट रहे हैं। एनसीडीईएक्स में सोयाबीन के दाम गिरकर 3174 रुपए प्रति क्विंटल पहुंच गए। अगस्त महीने की शुरूआत में वायदा बाजार में सोयाबीन की कीमत 3429 रुपए और जुलाई महीने की शुरूआत में 3567 रुपए प्रति क्विंटल थी। हाजिर बाजार में कीमतें गिरकर 3320 रुपए प्रति क्विंटल पहुंच गई, जबकि सोयाबीन का सरकारी मूल्य 3399 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है। कीमतों में गिरावट की वजह सोयाबीन का रकबा अधिक होना, अमेरिका में रिकॉर्ड उत्पादन और चीन-अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध को माना जा रहा है।
कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस बार देश में सोयाबीन का रकबा पिछले साल के मुकाबले 6.12 फीसदी बढ़ा है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा 27 अगस्त को जारी आंकड़ों के मुताबिक चालू सीजन में अभी तक देशभर में सोयाबीन की बुआई 111.29 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक सोयाबीन की बुआई 104.87 लाख हेक्टेयर में हुई थी। चालू सीजन में देश में सोयाबीन का औसत रकबा 112.55 लाख हेक्टेयर बताया जा रहा है।
देश में सोयाबीन उत्पादक प्रमुख राज्यों में सोयाबीन का रकबा पिछले साल की अपेक्षा अधिक है। देश में सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में 23 अगस्त तक 53.18 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई जबकि पिछले साल इस समय तक 50 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई हुई थी। महाराष्ट्र में इस साल सोयाबीन का रकबा 38.97 लाख हेक्टेयर पहुंच चुका है जबकि पिछले साल समीक्षाधीन अवधि तक रकबा 38 लाख हेक्टेयर था। सोयाबीन उत्पादन के तीसरे प्रमुख राज्य राजस्थान में भी इस बार फसल ज्यादा दिख रही है। राजस्थान में सोयाबीन की बुआई 10.46 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल 23 अगस्त तक रकबा 9.25 लाख हेक्टेयर था।