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बैंकों और घर खरीदारों के लिए आईबीसी और रेरा विरोधाभासी

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 23 2018 4:00PM | Updated Date: Apr 23 2018 4:00PM
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नई दिल्ली। वर्ष 2016 में इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) और रिएल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट (रेरा) कानूनों को लागू किया गया और इन दोनों का उद्देश्य हितधारकों को नुकसान से बचाना था। लेकिन, रिएल एस्टेट के मामले में ये दोनों कानून परस्पर विरोधाभासी नजर आते हैं। उद्योग संगठन एसोचैम के एक अध्ययन के मुताबिक दिवालिया कानून(आईबीसी) और रेरा रिएल एस्टेट से जुड़े मामलों में एक दूसरे को कड़ी टक्कर देते नजर आते हैं। एक तरफ आईबीसी रिएल एस्टेट डेवलपर्स को रिण देने वाले बैंकों तथा निवेशकों के हितों को सर्वोपरि मानता है तो दूसरी तरफ रेरा घर खरीदारों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करता है।

एसोचैम के अनुसार हाल में दिवालिया कानून से गुजर रही कुछ कंपनियों के मामले में यह विरोधाभास उभरकर सामने आया। आईबीसी कंपनियों को लेनदार और देनदार दोनों को राहत देते हुए कंपनियों को दिवालिया कानून की प्रक्रिया से गुजरने की अनुमति देता है तो रेरा घर खरीदारों को राहत देते हुए डेवलर्स और बिल्डर्स को परियोजना की देर के लिए जिम्मेदार ठहराता है। आईबीसी के प्रावधानों मुताबिक घर खरीदार असुरक्षित देनदार हैं इसी वजह से उन्हें मुआवजा संस्थागत या अन्य देनदारों के बाद मिलेगा।

आम्रपाली प्रोजेक्ट के मामले में ऐसा हुआ तो उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला दिया कि वित्तीय देनदार घर खरीदारों के घरों पर दावा नहीं कर सकते। इस तरह उच्चतम न्यायालय ने घर खरीदार के अधिकार को सर्वोपरि माना। एसोचैम के महासचिव डी एस रावत के मुताबिक आईबीसी और रेरा में आपसी तालमेल इस समस्या का अच्छा निदान है। 

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