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अडाणी फाउंडेशन की मदद से सरगुजा में आदिवासी महिलाएं आत्मनिर्भरता की राह पर

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 3 2020 3:54PM | Updated Date: Jan 3 2020 3:56PM
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अंबिकापुर। देश में नक्सलवाद से सर्वाधिक प्रभावित छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में अडाणी फाउंडेशन महिला बहुउद्देशीय सहकारी समिति (एमयूबीएसएस) के माध्यम से आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं का कौशल विकास कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभा रही है। अडाणी समूह की इस योजना में 10 गांवों को शामिल कर 250 ग्रामीण महिलाओं का सहकारी संघ बनाया गया है। इस समिति के जरिये रोजगार-सृजन के अवसर सृजित किये जा रहे हैं।
 
संघ की महिलाएं सफेद फिनायल का उत्पादन, वाटर फिल्टर संयंत्र का संचालन , मशरुम की खेती, स्कूलों में मध्यान्ह भोजन तथा कपड़ों की सिलाई कर स्वयं को तो सशक्त कर रही है और परिवार की आजीविका चलाने में भी योगदान दे रही है। संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि अपने उत्पादन को बेचने के लिए अमेजान से साझेदारी है। यह संघ छत्तीसगढ़ की पहली महिला सहकारी समिति है , जिसने देश के प्रमुख ई-कामर्स अमेजान के साथ अपने उत्पादन और ग्रामीण परिवेश में बनाई वस्तुओं की बिक्री के लिए समझौता किया है।
 
समिति से जुड़ी महिलाओं ने प्रारंभ में विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल किए जाने वाले पर्यावरण के अनुकूल कपड़ों के थैलों की बिक्री से शुरुआत की थी और अब इसका धीरे-धीरे अन्य क्षेत्रों में विस्तार किया जा रहा है । अमेजान से समझौता होने के परिणामस्वरुप संघ की महिलाओं के उत्पादित सामान की बिक्री पूरे देश के लिए उपलब्ध हो रही है। इस समझौते से समिति की उत्पादित वस्तुओं का एक बड़ा बाजार तो मिला ही संघ से जुड़ी महिलाओं की आमदनी बढ़ाने में भी मदद मिली है।
 
संघ की महिलाओं के निर्मित कपड़े के थैले के एकल इस्तेमाल प्लास्टिक को कम करने के विकल्प के रुप में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। संघ की सदस्य अडाणी विद्या मंदिर स्कूल में मध्यान्ह भोजन के काम से भी जुड़ी हुई हैं। इस स्कूल में नौवीं कक्षा तक 674 छात्र हैं जिनमें से 45 प्रतिशत लड़कियां हैं जो शिक्षा के क्षेत्र में स्वस्थ लिंग अनुपात माना जा सकता है । ये छात्र आदिवासी परिवारों से हैं जिनके पिता किसान और माताएं स्कूल में मध्यान्ह भोजन बनाने का काम करती हैं।
 
माताओं के द्वारा बनाया गया भोजन केवल बच्चों की पोषण संबंधी जरुरतों को ही पूरा नहीं करता बल्कि इसके माध्यम से विद्यालय के बच्चों को मां की तरह प्यार और दुलार भी मिलता है। अक्टूबर-19 में सहकारी पोषण सर्वेक्षण के नतीजों में मध्यान्ह भोजन में कुपोषण का उच्च स्तर था । इसके बाद माताओं से मध्यान्ह भोजन बनवाने का कार्य शुरु हुआ और इससे पोषण की समस्या को दूर करनले के साथ ही दूर-दराज के गांवों में समग्र सामुदायिक विकास का मार्ग भी प्रशस्त हुआ। इस क्षेत्र में किसानों ने पर्यावरण के अनुकूल फसलों के उतपादन के लिए वर्मी कम्पोस्ट खेती को तवज्जो दी है।
 
इस ध्येय किसानों की आय को बढ़ाना और उपभोक्ताओं को पौष्टिक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराना था । अन्नापूर्णा परियोजना के तहत वर्मी कमपोस्ट तरीके से खेती की जाती है । फसल का प्रबंधन महिला सहकारी समिति करती है जिससे किसानों को अपनी उपज का अच्छा दाम तो मिलता ही है उत्पादकों की बिक्री के लिए विश्वनीय बाजार भी उपलब्ध होता है। समिति के सदस्यों ने सैनिटरी पैड के क्षेत्र में बड़ी सफलता हासिल की।
 
समिति से जुड़ी महिलाएं मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता बनाए रखने के लिए नुक्कड़ नाटकों के जरिये जागरुकता पैदा करने में भी सक्रिय हैं। महिला सहकारी समिति की सदस्य मसालों की पैंकेजिंग और वितरण का भी काम करती हैं। समिति किसानों से स्थानीय उपज खरीदती है और इसे पीसकर मसाला बनाती है और इसे बेचने के लिए पैकेजिंग का काम करती हैं। इसके अलावा वे फिनाइल बनाती हैं और इसे पैकेजिंग कर अपने स्वच्छता दूत की टीमों के माध्यम से वितरण का काम करती है। इससे उनकी न सिर्फ आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है बल्कि गांवों में स्वच्छता अभियान को भी बढ़ावा मिलता है।
 
संघ से जुड़े विभिन्न छोटे-छोटे उपक्रमों की आय में बड़ी बढ़ोतरी होने से महिलाओं की जिंदगी में बदलाव आ रहा है। वर्ष 2018..19 के दौरान 56 महिलाओं को रोजगार दिया गया और इसके माध्यम से इस जिले में  संघ से जुड़ी महिलाओं को माह में औसतन रुप से 2300 रुपए की आमदनी हो रही है। सरगुजा जिले के गांवों में पोषण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता के मद्देनजर जीवन अमृत परियोजना के जरिए सुरक्षित और स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित की गयी। इससे क्षेत्र में जल जनित रोगों के पनपने का खतरा कम हो गया है। इस परियोजना का संचालन और प्रबंधन भी महिला सरकारी समिति की सदस्य करती हैं।
 
 
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