नई दिल्ली। सरकारी गलियारों में चर्चा है कि इस साल बजट में एस्टेट ड्यूटी या इन्हैरिटैंस टैक्स फिर से लगाया जा सकता है। विपक्ष इस पर एतराज कर रहा है जबकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे सामाजिक विषमता घटेगी। सरकार के सामने पैसा जुटाने की चुनौती है। सोमवार को आए आंकड़े बता रहे हैं कि 2 महीनों में जी.एस.टी. कलैक्शन औसतन करीब 14,000 करोड़ महीने कम हो गया। वित्त मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक अप्रैल 2019 में कुल जी.एस.टी. कलैक्शन 1,13,865 करोड़ रुपए था जबकि मई 2019 में यह 1,00,289 हो गया और जून 2019 में घटकर 99,939 करोड़ रुपए रह गया है। अब खबर यह है कि नए निवेश के लिए जरूरी संसाधन जुटाने के रास्ते खोज रही सरकार एस्टेट ड्यूटी या इन्हैरिटैंस टैक्स फिर से लाने पर विचार कर रही है।
ये टैक्स दरअसल पैतृक संपत्ति पर लिया जाता है। इसे 1953 में पहली बार भारत में लागू किया गया और यह करीब 32 साल देश में लागू रहा। दरअसल इस टैक्स को लेकर टैक्स मुकद्दमेबाजी इतनी ज्यादा हुई कि इसे 1985 में खत्म कर दिया गया। साफ है कि यह एक मुश्किल विकल्प साबित होता रहा है और अब देखना होगा कि वित्त मंत्रालय इस बारे में आगे क्या फैसला करता है? जमीन मामलों पर नीति आयोग की विशेषज्ञ समिति के मुताबिक भारत में अभी 1 प्रतिशत लोग 58 प्रतिशत वैल्थ कंट्रोल करते हैं। ऐसे लोगों पर इन्हैरिटैंस टैक्स लगाना चाहिए। भारत में टैक्स-जी.डी.पी. रेशो कम है। उसे बढ़ाना जरूरी है। इन्हैरिटैंस टैक्स से भारत में सामाजिक असमानता घटाने में मदद होगी।