नई दिल्ली। लड़ाकू विमान राफेल को लेकर पैदा हुआ विवाद राजनीति के मंच से देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है। आज केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राफेल डील से जुड़े दस्तावेज सौंपे। इस दौरान 36 राफेल विमानों को खरीदने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई, उसकी जानकारी याचिकाकर्ता को सौंपी गई। राफेल विवाद से जुड़ी याचिका वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी।
सरकार ने बताया कि इस प्रक्रिया के लिए फ्रांस की सरकार से करीब एक साल तक बात चली। सरकार ने दस्तावेजों में यह भी कहा कि सीसीएस (कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यॉरिटी) से अनुमति लेने के बाद समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस दस्तावेज का शीर्षक 36 राफेल विमानों की खरीद में फैसले लेने की प्रक्रिया की विस्तार से जानकारी है।
सरकार ने दस्तावेजों में कहा है कि उन्होंने राफेल विमान रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 के तहत इस खरीद को अंजाम दिया है। विमान के लिये रक्षा खरीद परिषद की मंजूरी ली गई थी, भारतीय दल ने फ्रांसीसी पक्ष के साथ बातचीत की। केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि राफेल पर भारतीय ऑफसेट पार्टनर चुनने में उनकी कोई भूमिका नहीं थी।
ये पूरी तरह से ऑरिजनल इक्विपमेंट मैनुफैक्चरर यानी डेसाल्ट एविएशन का फैसला था। सौंपी गई जानकारी में ये भी बताया गया कि जब भारतीय वार्ताकारों ने 4 अगस्त 2016 को 36 राफेल जेट से जुड़ी रिपोर्ट पेश की, तो इसका वित्त और कानून मंत्रालय ने भी आंकलन किया और सीसीएस ने 24 अगस्त 2016 को इसे मंजूरी दी। इसके बाद भारत-फ्रांस के बीच समझौते को 23 सितंबर 2016 को अंजाम दिया गया।