नई दिल्ली। सबरीमाला मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने महत्वूपर्ण फैसले में कहा कि हमारी संस्कृति में महिलाओं का आदर किया गया है। माननीय न्यायालय ने कहा कि पुरुषों से कम नहीं हैं महिलाएं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में लैंगिक आधार पर किसी को रोका जाना गलत है इसलिए मंदिर में सभी उम्र की महिलाएं प्रवेश करेंगी। कुल मिलाकर शुक्रवार को देश की सर्वोच्च न्यायालय ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगे धार्मिक प्रतिबंध को खत्म कर दिया।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। पांच जजों की बेंच ने 4-1 (पक्ष-विपक्ष) के हिसाब से महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस नरीमन, जस्टिस खानविलकर ने महिलाओं के पक्ष में एक मत से फैसला सुनाया, जबकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सबरीमाला मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया।
फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि आस्था के नाम पर लिंगभेद नहीं किया जा सकता है। कानून और समाज का काम सभी को बराबरी से देखने का है। महिलाओं के लिए दोहरा मापदंड उनके सम्मान को कम करता है। केरल के पत्थनमथिट्टा जिले के पश्चिमी घाट की पहाड़ी पर स्थित सबरीमाला मंदिर प्रबंधन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 10 से 50 वर्ष की आयु तक की महिलाओं के प्रवेश पर इसलिए प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि मासिक धर्म के समय वे शुद्धता बनाए नहीं रख सकतीं।
इस मामले में 7 नवंबर, 2016 को केरल सरकार ने कोर्ट को सूचित किया था कि वह ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है। शुरुआत में राज्य की तत्कालीन एलडीएफ सरकार ने 2007 में प्रगतिशील रूख अपनाते हुए मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की हिमायत की थी जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने बदल दिया था।
यूडीएफ सरकार का कहना था कि वह 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने के पक्ष में है क्योंकि यह परपंरा अति प्राचीन काल से चली आ रही है। बाद में केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए एक बार फिर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सहमति जताई। राज्य सरकार का कहना था कि सरकार हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश के समर्थन में है।