- दबंग सेंट्रल डेस्क
मौसूल। जब भी नफरत और मोहब्बत में से चुनने का मौका आता है ज्यादातर लोग नफरत ही चुनते हैं क्योंकि वो मोहब्बत के मुकाबले आसान होती है। कुछ ऐसे भी हैं जो मोहब्बत का दामन थामते हैं और उसे पूरी शिद्दत से निभाते हैं। ऐसी ही एक मिसाल सिक्ख समाज ने लोगों ने पेश की है वो भी खास मौके पर।
शनिवार को जब सारा मुस्लिम समुदाय ईद मना रहा था। कुछ लोग दर्द झेल रहे थे , इनके बीच फरिश्ता बन कर पंहुचे अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ ‘खालसा ऐड’ लोग। एनजीओ द्वारा सीरिया के शरणार्थियों की मदद का सिलसिना कई दिनों से जारी है लेकिन रमजान और इद पर इस मदद को और मजबूती से आगे बढाया गया।
इफ्तारी के वक्त सामान्य भोजन के साथ पकवान और फल भी लाए गए। ईद पर बच्चों के लिए खास सौगाते थीं। कपडेÞ,खिलौने सहित कई तोहफे दिए गए। सीरिया में जो हो रहा है, वो किसी से छिपा नहीं है। लेबनॉन और मौसूल में पहुंचाई गई इस मदद में स्थानिय संगठन ‘सावा’को भी साथी बनाया गया। 5000 से ज्यादा लोगों तक ईद पर पहुंचाई गई ‘खुशियों’ बारें में संगठन के लोगों ने कहा हमने सिर्फ अपना फर्ज निभाया है। अगर इंसान इतना ही कर दे तो दुनिया से नफरत खत्म ही हो जाएगी।
जंग का कहर झेल रहे बच्चे
आईएस के खिलाफ जंग में दुनिया के तीन बड़े देश शामिल हैं। रशिया, ब्रिटेन और अमेरिका लगातार आईएस के ठिकानो पर धावा बोलकर उनके ठिकाने तबाह कर रहे हैं। दोनों तरफ की लड़ाई में लोग मर रहे हैं। वहां बच्चों और महिलाओं की हालत बदतर है। सबके बीच जान बचाकर भाग रहे लागों के लिए शरणार्थी शिविर लगाए गए हैं। इसी कड़ी में ‘खासला एड’ ने मोर्चा संभाल लिया है।
जहां शरणार्थियों को शेल्टर के साथ खाना (लंगर), कपड़ा और दवाइयां मुहैया कराई जा रही है। तनाव ग्रस्त और अंदरूनी इलाकों में सिख युवा मानों जान हथेली पर रखकर मदद जुटा रहे हैं। हालांकि इस काम में दिक्कते पेश आ रही हैं, लेकिन वो दिक्कते वहां कि जिन्दगियों के सामने कुछ नहीं है। खालसा एड के वॉलेंटियर्स भोजन के अलावा राशन बांट रहे हैं। उन्होंने ज्यादा से ज्यादा परिवारों तक पहुंच बनाई है।
बाढ़ पीड़ितों की मदद
खालसा एड के युवाओं ने साल 2014 में जम्मू-काश्मीर का रुख किया था। जब बाढ़ से हाहाकार मचा थ, तब युनाइटेड सिख संस्था और शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सहयोग से राहत और बचाव कार्य में हिस्सा लिया, उस वक्त हरमंदर साहिब अमृतसर सेह्ललंगरह्व हवाई मार्ग से प्रभावित इलाकों तक पहुंचाया गया।जम्मू, श्रीनगर, पुलवामा, सहित अनंतनाग जैसे इलाकों में वॉलेंटियर्स जान की परवाह किए बगैर सेवा में जुटे रहे। आपको बता दें, सितम्बर 2014 में अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई थी, जो केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं थी। पाकिस्तान नियंत्रण वाले इलाकों में भी इसका खासा असर दिखा था। 8 सितम्बर 2014 तक, भारत में लगभग 200, और पाकिस्तान में 190 लोगों जाने गई थी
सीरिया में 7 साल पहले बिगड़े हालात
15 मार्च 2011 को सीरिया में जनता ने प्रदर्शन शुरू किया था, जो उत्तर पूर्व में जरी अरब क्रांति का हिस्सा था। विरोधियों की मांग थी कि राष्ट्रपति बशर अल अस्सद पद त्याग दें। सैनिकों ने देशभर के प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दीं। इसके बाद आंदोलन शस्त्रबद्ध हो गया। इसके बाद वहां कर लड़ाकों ने काफी बड़े हिस्से में कब्जा कर हमले शुरू कर दिए। शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधकर कमेटी के पूर्व सदस्य और अकाल पुरख की फौज के अध्यक्ष जसविन्दर सिंह एडवोकेट ने सीरिया में सिख समूह की मदद को लेकर कहा कि धर्म का मूल सेवा है।
उन्होंने इतिहास की एक बड़ी घटना का जिक्र करते बताया कि, साल 1704 में जब आनंदपुर साहिब में सिखों और मुगलों के बीच युद्ध हुआ, तो भाई घनैय्या जी नामक सिख सैनिक ने मुगल सेना के घायल जवानों को पानी पिलाना शुरू कर दिया, जिसकी शिकायत दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज से की गई थी, तो गुरु साहिब ने भाई घनैय्या जी को शाबाशी देकर उन्हें प्रोत्साहित किया था, साथ ही कहा था कि ह्लदया ही धर्म का मूलह्व है। जसविन्दर सिंह ने कहा कि आज सिख दुनियाभर में फैले हैं, जो विदेशों में अपनी धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक सामाजिक विकास की मूल भावना में बड़े भागीदार रहे हैं।
नेपाल त्रासदी में मदद के हाथ
25 अप्रैल साल 2015 को नेपाल भूकम्प से थर्रा गया था, जिसकी तीव्रता 8.1 मापी गई थी। उस दौरान कई प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर और इमारतें जमीदोज हो गई। 8000 से अधिक मौते हुईं, तो 2000 से अधिक घायल हुए थे। ऐसे में भारत सहित दुनियाभर से मदद के हाथ आगे आए। खालसा एड संस्था के युवा फिर मैदान में उतरे, उन्होंने काठमांडू सहित अन्य शहरों में जाकर राहत और बचाव कार्य में योगदान दिया। हजारों की संख्या में खाने की सामग्री के पैकेट लोगों तक पहुंचाए गए थे, जिसमें पीने का साफ पानी, दवाएं, बच्चों के लिए दूध सहित कपड़े पीड़ितों को मुहैया करवाए गए।