नई दिल्ली। बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर भागलपुर ने लौकी की एक नई किस्म बीआरबीजी 65 विकसित की है, जो प्रति हेक्टेयर 540 क्विंटल तक पैदावार देने में सक्षम है। कृषि वैज्ञानिकों ने छोटे परिवारों को ध्यान में रखकर लौकी की इस नयी किस्म तैयार की है। बिहार में पूरे साल खेती के लिए उपयुक्त बीआरबीजी 65 का औसत वजन 800 ग्राम होता है और इसमें बीज का विकास देर से होता है। इसके इस गुण के कारण मूल्य में उतार चढ़ाव आने पर किसान निर्धारित समय से तीन दिन बाद भी इसे तोड़ सकते हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की पत्रिका फल फूल के ताजे अंक में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार किसानों की आय दोगुनी करने में लौकी की नयी किस्म की खेती से मदद मिल सकती है। वैज्ञानिकों ने इस किस्म की लौकी के उच्च गुणवत्ता के होने का दावा किया है। इसकी पैदावार गर्मी, बरसात और शरद तीनों ही मौसम में की जा सकती है।
आर्थिक विश्लेषण के आधर पर पाया गया है कि यदि कोई किसान इस किस्म की लौकी की खेती करता है तो एक रुपये लगाकर चार माह में 2.25 रुपये की शुद्ध आय प्राप्त की जा सकती है। करीब तीन माह बाद लौकी की फसल में फूल का निकलना शुरू हो जाता है। बीआरबीजी 65 का फल देखने में सुन्दर, दोटा और समान रूप से बेलनाकार होता है।
इसकी औसत लम्बाई 32 से 35 सेन्टीमीटर होती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस किस्म की पैदावार प्रति हेक्टेयर 540 क्विंटल तक ली जा सकती है, जो अन्य किस्मों की तुलना में बहुत ज्यादा है। बरसात के मौसम के दौरान किसान बांस का मचान बनाकर इसकी पैदावार ले सकते हैं। छोटे आकार की लौकी की बाजार में अधिक मांग है। इसे भी ध्यान में रखकर बीआरबीजी 65 किस्म तैयार की गयी है। बिहार के अनेक हिस्सों में सब्जियों की व्यावसायिक खेती की जाती है तथा राज्य के बाहर इसकी आपूर्ति की जाती है।