नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट रामजन्मभूमि-बाबरी भूमि विवाद मामले के समाधान के लिए गठित मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट पर आज सुनवाई करेगा। इसे लेकर आज देशभर की निगाहें शीर्ष अदालत पर टिकी हुई हैं। अगर आज कोर्ट मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट में यह पाता है कि आगे मध्यस्थता से इस मामले की राह निकल सकती है तो फिर मध्यस्थता की राह खुली रहेगी, लेकिन अगर कोर्ट को पैनल की रिपोर्ट में मध्यस्थता की राह निकलती नहीं दिखेगी तो वह इस मामले में खुद सुनवाई का भी फैसला कर सकता है।
बता दें कि शीर्ष अदालत ने इस मसले के आपसी समाधान के लिए 8 मार्च को एक तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया था। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस कलीफुल्लाह को अदालत ने इस पैनल का अध्यक्ष नियुक्त किया था। इस पैनल ने अपनी रिपोर्ट में अयोध्या मसले के समाधान की उम्मीद जताई है। हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में लंबा समय लगने की बात भी कही है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस.ए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की संवैधानिक बेंच ने इस पैनल के गठन का फैसला लिया था। इस पैनल में जस्टिस कलीफुल्लाह के अलावा सीनियर एडवोकेट श्रीराम पंचू और धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर शामिल भी हैं। अदालत ने इस पैनल को अयोध्या मसले से जुड़े दोनों पक्षों को वार्ता की मेज पर लाने का काम दिया है। अयोध्या में भगवान राम का जन्मस्थान मानी जाने वाली 2.77 एकड़ भूमि को लेकर बीते 70 सालों से कानूनी विवाद चल रहा है।
पैनल ने अब तक दो संक्षिप्त रिपोर्ट्स सौंपी हैं। पहली रिपोर्ट अप्रैल में सौंपी गई थी, जिसमें पैनल ने इस बात की जानकारी दी थी कि उन्होंने किन पक्षों के साथ बैठकर बात की है। इसके बाद इसी सप्ताह एक अन्य रिपोर्ट भी सौंपी गई, जिसमें अभी कई और दौर की वार्ता करने की बात कही गई है। इन रिपोर्ट्स को लेकर कोई टिप्पणी करने से इनकार करते हुए पैनल के मेंबर श्रीराम पंचू ने कहा, 'अब तक की कार्यवाही से उम्मीद जगी है। मध्यस्थता और बातचीत की राह में मुश्किलें जरूर हैं, लेकिन यह हमारे लिए उम्मीद खत्म होने की वजह नहीं है।'
सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को अयोध्या मसले पर सुनवाई करेगा और माना जा रहा है कि इस दौरान पैनल की रिपोर्ट्स पर भी विचार करेगा। सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर विचार कर रहा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवाद भूखंड में से तीन हिस्से विभाजित करने का आदेश दिया था। इनमें से दो हिस्से हिंदू पक्षकारों और एक हिस्सा मुस्लिम पक्षकारों को देने का आदेश था। उच्च न्यायालय ने कुल 2.77 एकड़ भूमि को तीन हिस्सों में विभाजित करते हुए रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को एक-एक हिस्सा देने का फैसला दिया था।