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आपातकाल लगाना पड़ा था भारी, कांग्रेस ने गंवायी सत्ता

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 26 2019 12:14PM | Updated Date: Mar 26 2019 12:14PM
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नई दिल्ली। वर्ष 1977 में हुये छठे लोकसभा चुनाव के पहले लगाये गये आपातकाल की ‘नाराजगी’ से उपजी ‘जनता लहर’ ने न केवल कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया बल्कि तीन दशक से देश पर शासन कर रही पार्टी को सत्ता से बेदखल कर दिया। पच्चीस जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों को समाप्त किये जाने के खिलाफ लोकनायक जय प्रकाश नारायण की अगुआई में उठे तूफान में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी जड़ से उखाड़ दिया और कांग्रेस को आम चुनाव में पहली बार शिकस्त का सामना करना पड़ा। 
 
इस चुनाव में कुछ ऐसे नेताओं का उदय हुआ जिन्होंनें न केवल राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित किया बल्कि सत्ता के शिखर पर भी पहुंचे । इस चुनाव के बाद जनता पार्टी बनी लेकिन उसके नेता तकनीकी रुप से भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव जीते थे। गांधी नेहरु परिवार की सीट मानी जाने वाली उत्तर प्रदेश की रायबरेली में कांग्रेस की दिग्गज नेता श्रीमती गांधी को समाजवादी नेता राजनारायण ने पहली बार धूल चटा दी। लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े राजनारायण एक लाख 77 हजार 719 वोट लाने में कामयाब रहे जबकि श्रीमती गांधी 122512 वोट लाकर चुनाव हार गयी।
 
इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में सर्वश्री चौधरी चरण सिंह, लालू प्रसाद, चन्द्रशेखर, राम विलास पासवान, मधुलिमिये, जार्ज फर्नाडीस, कर्पूरी ठाकुर, मुरली मनोहर जोशी, राममूर्ति, जनेश्वर मिश्र जैसे नेता चुनाव जीत गये । चौकाने वाली बात यह रही कि भविष्य की राजनीति को पहचानने में दक्ष माने जाने वाले जगजीवन राम और हेमवती नंदन बहुगुणा ने लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयी हुये लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार के रुप में इलाहाबाद से चुनाव लड़े विश्वनाथ प्रताप सिंह हार गये।
 
लोकसभा की 542 सीटों के लिए हुये इस चुनाव में 426 सीट सामान्य श्रेणी की थीं जबकि 78 अनुसूचित जाति और 38 अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित थीं। कुल 32 करोड़ 11 लाख से अधिक मतदाता थे जिनमें से 60.49 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का उपयोग कर 2439 उम्मीदवारों के चुनावी किस्मत का फैसला किया था। राष्ट्रीय पार्टियों में कांग्रेस, कांग्रेस (ओ), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय लोकदल शामिल थी।
 
राज्य स्तरीय पार्टियों में अन्नाद्रमुक,  द्रमुक, फारवर्ड ब्लाक, केरल कांग्रेस, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, मुस्लिम लीग, पीजेंट एंड वर्क्स पार्टी, अकाली दल समेत कुल 12 पार्टियां थी, इसके अलावा 14 निबंधित पार्टियां भी थी। कांग्रेस 492 सीट पर चुनाव लड़ी थी जबकि कांग्रेस (ओ) 19, भाकपा 91, माकपा 53 और लोकदल ने 405 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किये थे। इस चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों के 1060 और राज्य स्तरीय पार्टियों के 85 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़े थे। अपने बलबूते पर 1234 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। लोकदल को कुल 41.32 प्रतिशत वोट मिले थे और उसके सार्वाधिक 295 उम्मीदवार विजयी हुये थे।
 
कांग्रेस को 34.52 प्रतिशत वोट मिले और उसके 154 उम्मीदवार चुनाव जीते थे । भाकपा का पहले की तुलना में वोट प्रतिशत कम हुआ था और उसके सात प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल हुये थे। माकपा की स्थिति वोट प्रतिशत के हिसाब से पहले से सुदृढ हुयी थी और उसे 4.29 प्रतिशत वोट मिले तथा उसके 22 उम्मीदवार लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे थे। कांग्रेस (ओ) को 1.72 प्रतिशत मत मिला और उसे तीन सीटों पर कामयाबी मिली।
 
राज्य स्तरीय पार्टियों को 8.80 प्रतिशत वोट मिले और वे 49 स्थानों पर निर्वाचित हुये जबकि निर्दलीय ने 5.50 प्रतिशत वोट लाकर नौ सीटों पर कब्जा कर लिया था। सत्ता की चाबी संभालने वाली लोकदल को उतर प्रदेश में 85, बिहार में 52, गुजरात में 16, हरियाणा में दस, आन्ध्र प्रदेश में एक, असम में तीन, हिमाचल प्रदेश में चार, कर्नाटक में दो, मध्य प्रदेश में 37, महाराष्ट्र में 19 ओडिशा में 15, पंजाब में तीन, राजस्थान में 24, पश्चिम बंगाल में 15, दिल्ली में सात, चंडीगढ और त्रिपुरा में एक - एक सीट मिली थी।
 
पहली बार विपक्ष में आयी कांग्रेस को आन्ध्र प्रदेश में 41, असम में दस, गुजरात में दस, कर्नाटक में 26, केरल में 11, महाराष्ट्र में 20, तमिलनाडु में 14, ओडिशा में चार, पश्चिम बंगाल में तीन राजस्थान में एक तथा कुछ अन्य राज्यों को मिलाकर कुल 154 सीटें मिली थी। भाकपा केवल दो राज्यों केरल और तमिलनाडु में सिमट गयी थी उसे केरल में चार और तमिलनाडु में तीन सीटें मिली थी। माकपा को पश्चिम बंगाल में 17, महाराष्ट्र में तीन, तथा ओडिशा और पंजाब में एक - एक सीट मिली थी।
 
द्रमुक को तमिलनाडु में दो, फारवर्ड ब्लाक को पश्चिम बंगाल में तीन, अकाली दल को पंजाब में नौ, पीजेंट एंड वर्क्स पार्टी को महाराष्ट्र में पांच तथा आरएसपी को केरल में एक तथा पश्चिम बंगाल में तीन सीटें मिली थी। निर्दलीय उम्मीदवारों को असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मिजोरम और मेघालय में सफलता मिली थी। लोकदल के टिकट पर जगजीवन राम ने सासाराम (सु) सीट पर कांग्रेस के मुंगेरी लाल को भारी मतों के अंतर से पराजित किया था। राम को 327995 और श्री लाल को 84185 वोट मिले थे। लोकदल के टिकट पर ही उत्तर प्रदेश के बागपत से लड़े चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के राम चन्द्र विकल को हराया था।
 
सिंह को दो लाख 86 हजार से अधिक तथा  विकल को एक लाख 64 हजार से अधिक वोट मिले थे। लोकदल के ही टिकट पर उत्तर प्रदेश के बलिया लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े चन्द्रशेखर ने कांग्रेस के चन्द्रिका प्रसाद को डेढ लाख लाख से अधिक मतों के अंतर से पराजित किया था। श्री चन्द्रशेखर को 262641 और प्रसाद को 95423 वोट मिले थे। बिहार की छपरा लोकसभा सीट से लोकदल के टिकट पर लालू प्रसाद यादव ने एकतरफा जीत हासिल किया था।
 
यादव को कुल 415409 मत मिले थे जबकि उनके खिलाफ चुनाव लड़े कांग्रेस के राम शेखर प्रसाद सिंह को 41609 वोट ही मिल पाए थे। लोकदल के ही टिकट पर राम विलास पासवान ने बिहार की हाजीपुर सीट पर कांग्रेस के वालेश्वर राम को भारी मतो से हराया था। श्री पासवान को 469007 तथा राम को 44462 वोट मिले थे। लोकदल के प्रत्याशी के रुप में मधु लिमिये ने बिहार की बांका सीट पर कांग्रेस के चन्द्रशेखर सिंह को पराजित किया था। मधु लिमिये को दो लाख 39 हजार से अधिक तथा  सिंह को 78 हजार से अधिक वोट मिले थे।
 
लोकदल के टिकट पर जार्ज फर्नाडीस ने बिहार के मुजफ्फरपुर क्षेत्र में कांग्रेस के नीतिश्वर प्रसाद सिंह तीन लाख से अधिक मतों के अंतर से हराया था। लोकदल के ही टिकट पर हेमवती नंदन बहुगुणा ने लखनऊ, मुरली मनोहर जोशी ने अल्मोड़ा, राममूर्ति ने बरेली, नानाजी देशमुख ने बलरामपुर, कमला बहुगुणा ने फूलपुर  और जनेश्वर मिश्रा ने इलाहाबाद में अपने अपने प्रतिद्वंद्वियों को पराजित किया था। कांग्रेस के टिकट पर सौगत राय पश्चिम बंगाल के बैरकपुर से चुनाव जीत गये थे लेकिन इसी पार्टी के जानकी वल्लभ पटनायक उड़ीसा में कटक सीट पर हार गये थे । 
               
       
         
 
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