नई दिल्ली। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय नई पीठ सुनवाई करेगी। पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ हैं। सोमवार को पीठ भविष्य में होने वाली सुनवाई की रूपरेखा तैयार करेगी। पक्षकारों के एक वकील विष्णु जैन की माने तो पीठ मामले में उचित पीठ का गठन कर सकती है।
यह भी संभव है कि पीठ ही नियमित रूप से सुनवाई करें। वर्ष 2010 से मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन भूमि विवाद के मसले पर अब तक सुनवाई शुरू नहीं हो सकी है। पहले पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। सुनवाई की शुरुआत में ही मुस्लिम पक्षकारों की ओर से कहा गया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला वर्ष 1994 में इस्माइल फारूखी मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से प्रेरित है।
उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मस्जिद इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग नहीं है व नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है। मुस्लिम पक्षकारों का कहना था कि पहले इस टिप्पणी को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ के पास भेजा जाए उसके बाद भूमि विवाद पर सुनवाई हो। गत 27 सितंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ द्वारा बहुमत (2:1) के आधार पर लिए गए फैसले में कहा गया था कि उक्त टिप्पणी भूमि अधिग्रहण के एक मामले में की गई थी।
लिहाजा पीठ ने इस मसले को संविधान पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने यह साफ किया कि मामले का निपटारा भूमि विवाद के तौर पर किया जाएगा। यह है पूरा मामलाराम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर, 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था। फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए।