मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से जुलाई में खरीफ फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में की गई वृद्धि यूपीए सरकार के समय की गई वृद्धि के मुकाबले काफी कम है। आरबीआई ने कहा कि 2008-09 और 2012-13 में पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा की गई एमएसपी में वृद्धि ज्यादा थी। सरकार ने जुलाई में गर्मी यानी खरीफ फसल के लिए एमएसपी बढ़ाने की घोषणा की थी। सरकार ने विभिन्न किस्म के धान के मूल्य में 200 रुपये तक वृद्धि की थी। इसके साथ ही कपास, तुअर और उड़द जैसी दलहन की एमएसपी में भी वृद्धि की गई थी।
सरकार ने इस साल के बजट में किसानों को उनकी फसल पर आने वाली लागत के ऊपर 50 प्रतिशत वृद्धि के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की घोषणा की थी। सरकार ने पिछले हफ्ते ही रबी की फसलों के लिए भी एमएसपी वृ्द्धि की घोषणा की है। गेहूं की एमएसपी 105 रुपये प्रति क्विंटल और मसूर का 225 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया गया है। आरबीआई ने मौद्रिक नीति समीक्षा रिपोर्ट में कहा, ह्यऐतिहासिक परिपेक्ष्य में, जुलाई में घोषित एमएसपी वृद्धि पिछले पांच वर्ष के औसत से उल्लेखनीय रूप से अधिक है लेकिन यह 2008-09 और 2012-13 में किए गए एमएसपी संशोधन के मुकाबले कम है।
मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018-19 के खरीफ मौसम में 14 फसलों के लिए की गई वृद्धि का अर्थ सामान्य न्यूनतम समर्थन मूल्य में पिछले वर्ष के स्तर की तुलना में 3.7 प्रतिशत से 52.5 प्रतिशत वृद्धि होना है। हालांकि, इसमें कहा गया है कि एमएसपी की वर्तमान वृद्धि प्रमुख मुद्रास्फीति में 0.29 से 0.35 प्रतिशत की वृद्धि कर सकती है।
रिजर्व बैंक के लिए मुद्रास्फीति को काबू रखना उसकी शीर्ष प्राथमिकता है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने कहा कि सितंबर तिमाही के अंत तक मुख्य मुद्रास्फीति के चालू वित्त वर्ष के अंत तक 3.8 से 4.5 प्रतिशत तक और अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही तक 4.8 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है।