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जलेबियां खाते-खाते जैन मुनि बन गए थे जैन मुनि तरुण सागर

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 2 2018 12:17PM | Updated Date: Sep 2 2018 12:17PM
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नई दिल्ली। क्रांतिकारी संत के नाम से चर्चित जैन मुनि तरुण सागर का 51 वर्ष की उम्र में शनिवार तड़के निधन हो गया। पूर्वी दिल्ली के कृष्णानगर इलाके में स्थित राधापुरी जैन मंदिर में सुबह करीब 3 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। सामाजिक मुद्दों पर मुखरता से अपनी राय रखने वाले तरुण सागर जी महाराज के बारे में कहा जाता है कि वह जलेबी खाते-खाते संत बन गए थे। हालांकि, इस बात की हकीकत क्या है, इसके बारे में उन्होंने मीडिया से बातचीत में पूरा किस्सा भी बताया था। जैन मुनि तरुण सागर छठी कक्षा में पढ़ाई के दौरान जलेबी खाते-खाते संन्यासी बन गए थे।
 
इस चर्चित वाकये पर तरुण सागर ने बताया था, 'मैं एक दिन स्कूल से घर जा रहा था। बचपन में मुझे जलेबियां बहुत पसंद थीं। स्कूल से वापस लौटते वक्त पास में ही एक होटल पड़ता था, जहां बैठकर मैं जलेबी खा रहा था। पास में आचार्य पुष्पधनसागरजी महाराज का प्रवचन चल रहा था। वह कह रहे थे कि तुम भी भगवान बन सकते हो, यह बात मेरे कानों में पड़ी और मैंने संत परंपरा अपना ली।'
 
...जब विशाल डडलानी ने कान पकड़े 
हरियाणा के शिक्षामंत्री रामबिलास शर्मा द्वारा तरुण सागर को न्योता दिया गया था। इसके बाद न्योते को स्वीकार कर सागर ने 26 अगस्त 2016 को हरियाणा विधानसभा को संबोधित किया था। अपनी परंपरा के मुताबिक, तरुण सागर इस मौके पर भी बिना कपड़ों के ही थे। इसी पर डडलानी ने लिखा था, 'अगर आपने इन लोगों के लिए वोट दिया है तो आप आप इस बकवास के लिए जिम्मेदार हो। नो अच्छे दिन जस्ट नो कच्छे दिन।' इस ट्वीट के बाद म्यूजिक कंपोजर विशाल डडलानी को जमकर फजीहत का सामना करना पड़ा। बाद में उन्होंने जैन मुनि तरुण सागर से कान पकड़कर जैन समुदाय की परंपरा पंच माफी के अनुसार भी क्षमा याचना की थी। 
 
बड़े समाज सुधारक
तरुण सागर महाराज सिर्फ अपने धर्म में ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष में अपने कडवे वचनों के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने 51 वर्ष की उम्र में दिल्ली के शाहदरा में अंतिम सांस ली। प्राप्त जाकारी के अनुसार उन्होंने समाधी ले ली है। यही उनकी इच्छा भी थी। उन्हें कैंसर भी था ऐसा भी बताया जा रहा है और पीलिया होने पर उनके शरीर में खून की कमी हो गई थी। तब उन्होंने समाधी लेने का फैसला किया और अन्न त्याग दिया। तरुण सागर जी सिर्फ एक मुनी ही नहीं थे वो हमारे समाज के सुधारक के रुप में भी काम कर थे।
 
नेताओं में और महिलाओं में समानता
नेता व महिलाओं में एक समानता है प्रसव की। महिला के लिए नौ माह व नेताओं के लिए पांच साल का प्रसव वर्ष होता है। कोई गर्भवती महिला आठ माह अपने परिवार का ख्याल रखती है और नौवें महीने परिवार महिला का ख्याल रखता है। नेता ठीक इसके विपरीत होते हैं। जनता चार साल तक नेताओं का ख्याल रखती है और नेता चुनाव आते समय एक साल जनता का ख्याल रखता है। महिला जिसे जनती है, उसे अपने गोद में बिठाती है। इसके विपरीत नेता कुर्सी में बैठकर बड़ा बनता है।
 
राजनीति और धर्म पति-पत्नी 
राजनीति और धर्म जैसे ज्वलंत विषयों पर भी जैन मुनि तरुण सागर ने अपने विचार रखे हैं। उन्होंने अपने प्रवचन में कहा है कि राजनीति को धर्म से ही हम कंट्रोल करते हैं। अगर धर्म पति है तो राजनीति पत्नी। जिस तरह अपनी पत्नी को सुरक्षा देना हर पति का कर्तव्य होता है वैसे ही हर पत्नी का धर्म होता है कि वो पति के अनुशासन को स्वीकार करे। ठीक ऐसा ही राजनीति और धर्म के बीच होना चाहिए। क्योंकि बिना अंकुश के हर कोई बेलगाम हाथी की तरह होता है।
 
भगवाकरण पर जैन मुनि के विचार
एक बार हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर आरोप लगा था कि उन्होंने राजनीति का भगवाकरण कर दिया है। इस पर जैन मुनि तरुण सागर ने कहा था कि उन्होंने भगवाकरण नहीं बल्कि शुद्धिकरण किया है। जीवन के सार पर प्रवचन देते हुए जैन मुनि तरुण सागर ने कहा था कि पूरी दुनिया को आप चमड़े से नहीं ढ़क सकते हैं लेकिन चमड़े के जूते पहन कर चलेंगे तो दुनिया आपके जूतों से ढक जाएगी। यही जीवन का सार है।
 
आपके नोट नहीं खोट चाहिए
मैं आपकी गलत धारणाओं पर बुलडोजर चलाऊंगा। आज का आदमी बच्चों को कम, गलत धारणाओं को ज्यादा पालता है। इसलिए वह खुश नहीं है। इसलिए मुझे आपके नोट नहीं, आपके खोट चाहिए।  इस मतलबी दुनिया को ध्यान से नहीं, धन से मतलब है। भजन से नहीं, भोजन से व सत्संग से नहीं, राग-रंग से मतलब है। सभी पूछते हैं कि घर, परिवार व व्यापार कितना है। कोई नहीं पूछता कि भगवान से कितना प्यार है। तुम्हारी वजह से जीते जी किसी की आंखों में आंसू आए तो यह सबसे बड़ा पाप है। लोग मरने के बाद तुम्हारे लिए रोए, यह सबसे बड़ा पुण्य है। इसीलिए जिंदगी में ऐसे काम करो कि, मरने के बाद तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए किसी और को प्रार्थना नहीं करनी पड़े। क्योंकि दूसरों के द्वारा की गई प्रार्थना किसी काम की नहीं है। 
 
बुराइयों पर प्रहार
तरुण सागर महाराज जी समाज में व्यापत बुराईयों पर कडा प्रहार करते थे। जिन्हें कडवे वचन के रुप में जाना जाता है। कडवे वचनों को ऐसे भी समझा जा सकता है कि किसी को जो कहना साफ कहना। गलत को खुलकर गलत कहना। अपनी इसी विशेषता के लिए तरुण सागर महाराज जाने जाते थे। तरुण सागर महाराज का मानना था कि मेरे वचनों से किसी को बुरा लगता है तो वो उससे माफी मांग लेंगे लेकिन जब मुनी तरुण सागर कहने के लिए बैठते हैं तो किसी को नहीं बक्शते। यही उनका अंदाज था।
 
हंसते मनुष्य हैं कुत्ते नहीं
उन्होंने अपने प्रवचन में कहा है कि हंसने का गुण सिर्फ मनुष्यों को प्राप्त है इसलिए जब भी मौका मिले जी खोल कर मुस्कुराइए। कुत्ते चाहकर भी नहीं मुस्कुरा सकते हैं।
 
कन्या भ्रूण हत्या पर जैन मुनि के विचार
कन्या भ्रूण हत्या पर जैन मुनि तरुण सागर महाराज ने एक बार अपने प्रवचन में कहा था कि जिनकी बेटी ना हो उन्हें चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए और जिस घर में बेटी ना हो वहां शादी ही नहीं करनी चाहिए। जिस घर में बेटी ना हो उस घर से साधु-संतों को भिक्षा भी नहीं लेनी चाहिए।
 
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