नई दिल्ली। डिफेंस कॉरिडोर की घोषणा के बाद देश के डिफेंस सिस्टम को एमएसएमईएस से रफ्तार मिल सकती है। जानकारों का कहना है कि तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में डिफेंस कॉरिडोर बनने से मैन्युफैक्चरर्स का काम आसान हो जाएगा। इस कॉरिडोर को लेकर प्रारंभिक काम शुरू भी हो गया है। 2025 तक भारत सरकार के आयात कम करने के टारगेट को पूरा करने के लिए क्लस्टर्स बनाए जाएंगे।
सुंदरम आर. करीब तीन दशकों से मिलिट्री एयरक्राफ्ट के पार्ट्स बना रहे हैं, लेकिन सलेम में यूनिट के मालिक के लिए यह इतना आसान नहीं था। पूरी तरह से स्थापित कारोबार के बावजूद उनके जैसे उद्यमियों को काफी दौड़भाग करनी पड़ती है। एयरक्राफ्ट के पुर्जों के टेस्ट और उसे सर्टिफाई कराने के लिए उन्हें कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता है।
इसके बाद ही असेंबलिंग यूनिटों में इसकी आपूर्ति की जाती है। हालांकि अब उन्हें उम्मीद है कि केंद्र सरकार द्वारा डिफेंस कॉरिडोर की घोषणा के बाद हालात बदलेंगे। उन्होंने कहा यह हमारे लिए बड़ा वरदान है। यह मौजूदा मैन्युफैक्चरर्स के लिए प्रॉडक्ट टेस्टिंग और सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया को सरल बना देगा।
इसके साथ ही डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में आने के लिए नई यूनिटों को भी प्रोत्साहन मिलेगा। कुछ महीने पहले ही केंद्र सरकार ने तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में डिफेंस कॉरिडोर्स की स्थापना करने की घोषणा की है। यहां डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में काम करनेवाले माइक्रो स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज एमएसएमईएस क्लस्टर्स के लिए आपस में लिंक्ड होंगे। अगर यह पहल मूर्त रूप लेती है तो 2025 तक सुंदरम भी उन यूनिटों में से एक हो सकते हैं जो तमिलनाडु को ऐसे पुर्जों के बड़े निर्यातक के रूप में आगे ले जाएंगे।