नई दिल्ली। ट्रेनों में लेटलतीफी पर रेल मंत्रालय ने परिवहन में बोले जाने वाले सूक्ति वाक्य दुर्घटना से देर भली को अपना तकिया कलाम बना लिया है। इन दिनों देश में न तो कोहरा पड़ रहा है और न ही कहीं बाढ़ आई है, इसके बावजूद ट्रेनों की लेटलतीफी बरकरार है, जिसके चलते देशभर के यात्री परेशान हैं।
देश में न कहीं किसान आंदोलन चल रहा है और न किसी प्रकार का कोई अन्य आंदोलन चल रहा है, जिसकी वजह से ट्रेनों के परिचालन में कोई परेशानी आए, लेकिन जब ट्रेनों की लेटलतीफी की बात की जाती है तो रेल मंत्रालय कोहरे या बाढ़ की बात कहकर पल्ला झाड़ लेता है। इस वक्त लंबी दूरी की ट्रेनें घंटों की देरी से चल रही हैं।
उनके अपने गंतव्य तक पहुंचने का कोई निश्चित समय नहीं है। रेल मंत्रालय के आंकड़े भी यह नहीं बताते कि टाइम-टेबल बिगड़ चुका है। यदि 2016-17 के आंकड़ों की बात करें तो मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों के समय पर पहुंचने का औसत 76 फीसदी रहा था। यानी कि 76 फीसदी रेलगाड़ियां अपने निर्धारित समय पर चलीं थी।
वर्ष 2017-18 के दौरान मेल एक्सप्रेस ट्रेनों के समय पर पहुंचने की औसत दर घटकर 71.38 फीसदी रह गई है। यानी कि रेलगाड़ियों का परिचालन सुधरने की बजाय बिगड़ गया और अगर पैसेंजर ट्रेनों की बात करें तो वर्ष 2016-17 के दौरान समय पर पहुंचने की औसतन दर 76.53 फीसदी रही, जबकि वर्ष में 2017-18 में गिरकर 72.66 फीसदी रह गई है।