नई दिल्ली। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने राजधानी के लाल किले की देखभाल के लिए उसे डालमिया ग्रुप को दिए जाने की कड़ी निंदा की है और कहा है कि देश के विरासत स्थलों का निजीकरण नहीं होने दिया जाना चाहिए। पार्टी ने यहां जारी बयान में कहा कि मोदी सरकार ने डालमिया के साथ एक करार करके पांच सालों के लिए लाल किले को उसके हाथों सौप दिया और अब वह उसका व्यावसायिक इस्तेमाल कर सकेगा। वह वहां होने वाले हर समारोहों में अपने नाम का इस्तेमाल करेगा।
पार्टी का कहना कि लाल किले के प्राचीर से 1857 का प्रथम स्वाधीनता संग्राम लड़ा गया और बहादुर शाह जफर ने यह लड़ाई इसी किले से लड़ी। आईएनए ट्रायल भी इसी किले में हुआ और आज़ादी का झंडा भी इसी किले से फहराया गया। यह किला देश की आज़ादी का प्रतीक है और हर प्रधानमंत्री इस किले के प्राचीर से 15 अगस्त को देश को संबोधित करते है। इस किले को महज़ 25 करोड़ रुपये के बदले डालमिया को सौंप दिया गया। माकपा ने कहा है कि संसदीय समिति ने भी किसी निजी कंपनी को इन विरासत स्थलों को दिए जाने का विरोध किया था लेकिन सरकार ने उसकी सलाह नहीं मानी। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे और उसे वापस ले।